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________________ श्री गुणस्थान द्वार | (- २१५ ) २१ समकित द्वार पहेले तीसरे गुण ० समकित नहीं, दूसरे गुण० १माखादान समकित चोथे, पांचवें, छह गुण ० उपशन तथा क्षयोपशम और सातवें गुण ० - ३ उपशम, क्षयोपशपम, क्षायक | दशवें इग्यारहवें गुण ० - २दो समकित, उपशम और चायक, बारहवें, तेरहवें, चौदहवें गुण ० तथा सिद्ध में १क्षायक समकित पावे । २२ अल्प बहुत्व द्वार सर्व से थोड़ा इग्यारहवें गुणस्थान बाले । एक समय में उपशम श्रेणि वाला ५४ जीव मिले। इससे बारहवें गुणस्थानवाला संख्यात गुणा । एक समय में क्षपक श्रेणि वाला १०८ जीव पावे। इससे आठवें नववें दशवें गुण० संख्यात गुणा, जघन्य २०० उत्कृष्ट ६०० पावे । इससे तेरहवें गुण० संख्यात गुणा, जघ दो क्रोडी (करोड़) उ० नव करोड पावे | इससे सातवें गुण ० संख्यात गुण, जघन्य २०० करोड़ उ० नवसे करोड पाव | इससे छठ्ठे गुण ० संख्यात गुणा ज० दो हजार करोड उ० नव हजार करोड़ पावे। इससे पांचवे गण० असंख्यात गुणे, तिर्यच, चक, श्री । इससे दूसरे गुण ०अ० संख्यात गुण ४ गति श्री । इससे तीसरे गुण असंख्यात गुणा (४गति में विशेष है) इससे चोथे गुण ० असंख्यात गुणा ( अत्यन्त स्थिति होने से ) इससे चौदहवें गुण और सिद्ध भगवन्त अनन्तगुणा । इससे पहेला गुण० अनन्त गुणा (एकेन्द्रिय प्रमुख सर्व मिथ्या दृष्टि है इस श्री ) ॥ इति गुणस्थान २२ द्वार For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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