SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीगुणस्थान द्वार । ( २१३ ) (देश चारित्र है) छठे स दशवें गुण० तक ८ आत्मा, इग्यारहवें बारहवें तेरहवें गुण ७ आत्मा कषाय छोड़ कर, चौदहवें गुण०६आत्मा कषाय और योग छोड़ कर,सिद्ध में ४ आत्मा-ज्ञानात्मा,दर्शनात्मा,द्रव्यात्मा,उपयोगात्मा । १६ जीव भेद द्वार पहेले गुण० १४ भेद पावे,दुसरे गुण ० ६ मे पावे वे इन्द्रिय, त्रीइन्द्रिय, चौरिन्द्रिय, असंज्ञी तिर्थव पंचेन्द्रिय इन चार का अपर्याप्ता और संज्ञी पंचेन्द्रिय का अपर्याप्ता और पोप्ता एवं ६, तीसरे गुण संज्ञी पंचेन्द्रिय का पर्याप्ता पावे, चोथे गुण० २ भेद पावे संज्ञी पंचेन्द्रिय का अपर्याप्ता और पर्याप्ता पाचवें से चौदहवें गुण० तक १ संज्ञी पंचेन्द्रिय का पर्याप्ता पावे। १७ योग द्वार पहेले दूसरे चौथे गुण० योग १३ पावे, आहारिक के दो छोड़ कर । तीसरे गुण. १० योग पावे -४ मनका ४ वचन का ८,६ औदारिक का और १० वैक्रिय का एवं १०, पांचवें गुण० १२ योग पावे आहारिक के दो और एक कार्मण का एवं तीन छोड शेष १२ योग । छठे गुण १४ योग पावे (कार्मण का छोड कर ) सातवें गुण० ११ योग-४ मन के, ४ वचन के, १औदारिक का १ वैक्रिय का,एक आहारिक का एवं ११,आठवें गुण० से १२ गुण तक योग पावे-४ मन के ४ वचन के और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy