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(६)
थोकडा संग्रह।
१०१ क्षेत्र के संमूर्छिम मनुष्य ( चौदह स्थानोत्पन्न ) का अपर्यप्ता । इस प्रकार मनुष्य के ३०३ भेद हुवे ।
देवता के भेदः-१० असुर कुमारादिक और१५पर. माधर्मी एवं २५ भेद भवनपति के, १६ प्रकार के पिशाचादि देव व १० प्रकार के जंभिका एवं २६ भेद वाणव्यन्तर के, ज्योतिषी देव के १० भेद-५ चर ज्योतिषी और ५ अचर (स्थिर)ज्योतिषी । तीन किल्विषी १२ देव लोक, हलोकान्तिक, 8 ग्रैवेयक (ग्रीवेक) ५ अनुत्तर विमान । इन १६ (१०+१+१६+१०+१०+३+१+8+8+५ ) जाति के देवों का अपर्याप्ता व पर्याप्ता एवं देवता के १६८ भेद जानना। __एवं सब मिलाकर ५६३ भेद जीव तत्व के जानना इन जीव को जानकर इनकी दया पालनी चाहिये जिससे इस भव में व पर भव में परम सुख की प्राप्ति हो ॥
॥इति श्री जीव तत्त्व ।।
.. (२) अजीव तत्व के लक्षण तथा भेद ।।
अजीव तत्त्वः-जो जड़ लक्षण,चैतन्य रहित, वणादिक रुप सहित तथा रहित, सुख दुःख को नहीं वेदने वाला हो उसे अजीव तत्त्व कहते हैं।
अजीव के १४ भेद-१ धर्मास्तिकाय का स्कंध,
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