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________________ नव तरव। (५) ३ मनुष्य के तीन सो तीन, और ४ देवता के एकसो अठाणु । नारकी के भेदः-१ धम्मा, २ वंसा ३ सीला, ४ अंजना ५ रिष्टा, ६ मघा, और ७ माघवती, इन सातों नरकों में रहने वाले (नेरियों ) जीवों के अपर्याप्ता व पर्याप्ता एवं १४ भेद । तिर्यञ्च के ४८ भेदः- १ पृथ्वी काय, २ अपकाय, ३ तेजस्काय, ४ वायु काय,ये चार सूक्ष्म और चार बादर ( स्थूल ) एवं ८ इन आठ के अपर्याप्ता और पर्याप्ता एवं १६। वनस्पति के छः भदः-१ सूक्ष्म, २ प्रत्येक, और ३ साधारण इन तीन के अपर्याप्ता व पर्याप्ताये ६ मिल कर २२ भेद, १ बेइन्द्रिय, २ त्री-इन्द्रिय ३ चौरिन्द्रिय इन ३ का अपर्याप्ता और पर्याप्तः ये छः मिलकर २८ । तिर्यश्च पञ्चन्द्रिय के २० भेदः-१ जलचर, २ स्थलचर, ३ उरपर, ४ भुजपर, ५ खेचर । ये पाँच गर्भज और पाँच संमृछिम एवं १० इन १० के अपर्याप्ता और पयोप्ता । ये २० मिल कर तिर्यञ्च के कुल (१६+६+६+२०) ४८ भेद हुवे। ___मनुष्य के ३०३ भेदः-१५ कर्मभूमि के मनुष्य, ३० अकर्म भूमि के और ५६ अंतर द्वीप के एवं १०१ क्षेत्र के गर्भज मनुष्य का अपर्याप्ता व पर्याप्ता एवं २०२ और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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