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थोकडा संग्रह।
छोड़ते हैं-१जाति २ गति ३ स्थिति ४ अवगाहना ५ प्रदेश और ६ अनुभाव ।
® आठवां आकर्ष द्वार* ___ तथाविध प्रयत्न करके कर्म पुद्गल का ग्रहण करने व खेचने को आकर्ष कहते हैं जैसे गाय पानी पीते समय भय से पीछे देखे व फिर पीवे वैसे ही जीव जाति निद्धतादि श्रायुष्य को जघन्य एव, दो, तीन उत्कृष्ट पाठ श्राकर्ष करके बांधता है।
आकर्ष का अल्प तथा बहुत्व सब से थोड़ा जीव पाठ आकर्ष से जाति निद्धत्तायुष्य को बांधने वाले, उससे सात से बांधने वाले संख्यात गुणा, उससे छ से बांधने वाले संख्यात गुणा, उससे पांच से बांधने वाले संख्यात गुणा उससे चार से बांधने वाले संख्यात गुणा उससे तीन से बांधने वाले संख्यात गुणा, उससे दो से बांधने वाले संख्यात गुणा उससे एक से बांधने वाले संख्यात गुणा ।
॥ इति गतागति सम्पूर्ण ॥
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