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________________ गता गति द्वार । ( १४६ ) (४) खेचर की ५१६ बोल की-५२१ में से चौथी नरक का अपर्याप्ता और पर्याप्ता ये२ बोल घटाना। (५) भुजपुर ( सर्प ) की ५१७ बोल की-५१६ में से तीसरी नरक का अपर्याप्ता और पर्याप्ता ये२ बोल घटाना। असंज्ञी मनुष्य की आगति १७१ बोल की-ऊपर कहे हुवे १७६ बोल में से तेजस् वायु का पाठ बोल घटाना। गति १७६ बोल की, ऊपर समान । १५ कर्म भूमि संज्ञी मनुष्य की प्रागति २७६ बोल की:-उन १७६ बोल में से तेजस् वायु का पाठ बोल घटाने से शेष १७१ बोल, 88 जाति के देव, और पहेली नरक से छठी नरक तक एवं (१७१+88+६) २७६ बोल। गति ५६३ बोल की। ३० अकर्म भूमि संज्ञो मनुष्य की आगति २० बोल की १५ कर्म भूमि, ५ संज्ञी तिथंच एवं २० बोल गति नीचे अनुसार । ५ देव कुरु, ५ उत्तर कुरु इन दश क्षेत्र के युगलियों की १२८ बोल की ६४ जाति के देव का अपर्याप्ता और पर्याप्ता एवं १२८ बोल की। ५ हरि वास, ५ रम्यक वास इन दश क्षेत्र के युगलियों की १२६ बोल की-उक्त १२८ बोल में से पहेला किल्विषी का अपर्याप्ता और पर्याप्ता घटाना। ५ हेमवय, ५ हिरण्यवय-इन दश क्षेत्र के युगलियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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