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________________ थोकडा संग्रह। (१४८) ....... तीन विकलेन्द्रिय (बेन्द्रिय, त्रीइन्द्रिय, चौरिन्द्रिय,) की आगति १७६ बोल की ऊपर समान । गति १७६ बोल की ऊपर समान । असंज्ञी तिर्यच की आगति १७६ बोल की--१०१ संमूर्छिम मनुष्य का अपर्याप्ता, १५ कर्म भूमि का अपर्याप्ता और पर्याप्ता और ४८ जाति का तिर्यच एवं १७६ बोल । गति ३६५ बोल की-५६ अन्तर द्वीप, ५१ जाति का देव, पहेली नरक इन १०८ का अपर्याप्ता और पर्याप्ता ये २१६ और ऊपर कहे हुवे १७६ एवं ३६५ बोल। संज्ञी तिथंच की प्रागति २६७ बोल की-८१ जाति का देव ( ६६ जाति के देवताओं में से ऊपर के चार देव लोक नव ग्रीयवेक, ५ अनुत्तर विमान एवं १८ छोड़ शेष ८१ जाति का देव ) सात नरक का पर्याप्ता ये ८८ और ऊपर कहे हुवे १७६ एवं २६७ बोल । गति पांचों की अलग अलग (१) जलचर की ५२७ बोल की-५६३ में से नववे देव लोक से सर्वार्थ सिद्ध तक १८ जाति का देव का अपर्याप्ता और पर्याप्ता एवं ३६ बोल छोड़ शेष ५२७ बोल । २ उरपर (सर्प) की ५२३ बोल की-उक्त ५२७ में से छही और सातवीं नरक का अपर्याप्ता और पर्याप्ता ये चार बोल छोड़ शेष ५२३ बोल । (३) स्थलचर की ५२१ बोल की-५२३ में से पांचवीं नरक का अपर्याप्ता और पर्याप्ता-ये दो बोल घटाना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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