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थोकडा संग्रह। की १२४ बोल की-उक्त १२६ बोल में से दूसरे देव लोक का अपर्याप्ता और पर्याप्ता घटाना।
५६ अंतर द्वीप के युगलियों की २५ बोल की श्रागति-१५ कर्म भूमि, ५ संज्ञी तिर्यंच, ५ असंज्ञी तिर्यच एवं २५ गति १०२ बोलकी-२५ भवन पति, २६ वाण व्यन्तर,-इन ५१ का अपर्याप्ता और पर्याप्ता एवं १०२ ये २२ बोल सम्पूर्ण इन २२ बोल में चोवीश दण्डक की गता गति कही गई है।
नव उत्तम पदवी में से मांडलिक राजा छोड़ शेष पाठ पदवीधर मिथ्यात्वी तथा तीन वेद-एवं १२ बोल की गतागति
(१) तीर्थकर की प्रागति३८ बोल की-वैमानिक का ३५ भेद व पहेली दुसरी, तीसरी नरक एवं ३८, गति मोक्ष की।
(२) चक्रवर्ति की आगति ८२ बोल की-६६ जाति के देव में से-१५ परमाधर्मी, तीन किल्विषी-ये १८ छोड़ शेष ८१ व पहेली नरक एवं ८२, गति १४ बोल की-सात नरक का अपर्याप्ता और पर्याप्ता एवं १४ ( यदि ये दीक्षा लेवे तो गति देव की या मोक्ष की )
(३) वासुदेव की आगति ३२ बोल की-१२ देवलोक
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