________________
गता गति द्वार।
(१४१)
* गता गति द्वार *
गाथा
'बारस 'चउवीसाइ संतर "एगसमय 'कत्तीय । उवट्टण परभव 'आऊयं च अठेव आगरिसा ।।
® पहिला वारस द्वार के नरक, तिर्यच, मनुष्य, देव इन चार गतियों में उत्पन्न होने का। चवने का अंतर पड़े तो जघन्य एक समय उत्कृष्ट चारह मुहूत का अंतर पड़े। सिद्ध गति में अंतर पड़े तो जघन्य एक समय, उत्कृष्ट छः मास का । चवने का अन्तर नहीं पड़े।
* दूसरा चउविश द्वार (१) पहेली नरक में अंतर पड़े तो जघन्य एक समय, उत्कृष्ट चोवीश मुहूर्त का।
(२) दूसरी नरक में अंतर पड़े तो जघन्य एक समय उत्कृष्ट सात दिन का। ___ (३) तीसरी नरक में जघन्य एक समय उत्कृष्ट पन्द्रह दिन का
(४) चौथी नरक में , , , , एक माह का (३) पांचवी ,, , , , , , दो , , (६) छटो , "" " , " चार " " (७) सातवी " " " छ " "
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org