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________________ ( १३२ ) ६ समान । ܕܝ " ܕ इन चार की गति तिर्येच की, स्थिति एक वर्ष की, घात करे देश व्रत की । ६ प्रत्याख्याना वरणीय क्रोध- वेलु (रेत) की भींत ( दीवार ) समान 19 घात करे साधुत्व 95 मान - हड्डिका स्थम्भ समान माया- मेंढे के सींग समान " लोभ - नगर की गटर के कर्दम (कादा) 11 १० ११ १२ , लोभ-गाडा का अंजन (कञ्जल) ,, 99 11 इन चार की गति -मनुष्य की, स्थिति चार माह की, की । " " ܕ १३ संज्वलन को क्रोध - जल के अन्दर लकीर समान " मान - तृण के स्थम्भ समान १४ १५ माया वांस की छोई (छिलका) समान .. 11 १६ " लोभ-- पतंग तथा हलदी के रंग समान इन चार की गति देव की स्थिति पन्द्रह दिनों की, -- थोकडा संग्रह | के मान - लकड़ स्थम्भ समान " ,, माया - गौमुत्रिका (बेल पुतणी ) समान घात करे केवल ज्ञान की । Jain Education International | नोकषाय चारित्र मोहनीय की नव प्रकृति | १ हास्य २ रति ३ अरति ४ भय ५ शोक ६ दु:गंछा ७ स्त्री वेद ८ पुरुष वेद ६ नपुंसक वेद । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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