SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२८ ) थोकडा सग्रह। छ महिने बाद फिर आवे उस समय डिब्बा जहां रक्खा होवे वहां से लाकर घर में रखे पश्चात् काल करे । ऐसी निद्रा लेने वाला जीव मर कर नरक में जावे । इसे स्त्यानर्द्धि निद्रा कहते है। ६ चक्षु दर्शनावरणीय ७ अचक्षु दर्शना वरणीय ८ अवधि दर्शनावरणीय ह केवल दर्शनावरणीय । * दर्शणा वरणीय कर्म छ प्रकारे बांधे * १ देसण पडिणियाए-सम्यक्त्व तथा सम्यक्त्वी का अवर्णवाद बोले तो दर्शनावरणीय कर्म बांधे । २ दमण निणहणियाए-बोध बीज सम्यक्त्व दाता के नाम को छिपाव ता दर्शनावणीय कर्म बांधे । ३ सण अंतरायणं-यदि कोई समकित ग्रहण कर ता हो उसे अन्ताय देवे तो दर्शनावरणीय कर्म बांधे । ४ सण पाउसियाए-समक्ति तथा सम्यक्त्वी पर द्वेष करे तो दर्शना वरणीय कर्म बांधे। ५ दंसण आसायणाए--समकित तथा सम्यक्त्वी की असातना करे तो दर्शना वरणीय को बांधे । ६ दंमण विसंवायणा जोगणं- सम्यक्त्वी के साथ खोटा व झूठा विवाद करे तो दर्शना वरणीय कर्म बांधे। दर्शना वरणीय कर्म नव प्रकारे भोगवे १ निद्रा २ निद्रा निद्रा ३ प्रचला ४ प्रचला प्रचल। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy