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________________ आठ कर्म की प्रकृति। ( १२६) ५ थीणद्धि ( स्त्यानार्द्ध ) ६ चक्षु दर्शना वरणीय ७ अचक्षु दर्शना वरणीय ८ अवधि दर्शना वरणीय ह केवल दर्शना वरणीय। दर्शना वरणीय कर्म की स्थिति जघन्य अन्तर मुहूते की उत्कृष्ट तीश करोडा करोडी सागरोपम की,अबाधा काल तीन हजार वर्षका । ३ वेदनीय कर्म का विस्तार वेदनीय कर के दो भेद-१ शाता वेदनीय २ अशाता वेदनीय । वेदनीय कर्म की सोलह प्रकृतिः-आठ शाता वेदनीय की और पाठ अशाता वेदनीय की। । शाता वेदनीय कर्म की पाठ प्रकृति । १ मनोज्ञ शब्द २ मनोज्ञ रूप ३ मनोज्ञ गंध ४ मनोज्ञ रस ५ मनोज्ञ स्पर्श ६ मन सौख्य ( सुहिया ) ७ वचन सौख्य ८ काया सौख्य । । अशाता वेदनीय कर्म की आठ प्रकृति। १ अमनोज्ञ शब्द २ अमनोज्ञ रूप ३ अमनोज्ञ गंध ४ अमनोज्ञ रस ५ अमनोज्ञ स्पर्श ६ मन दुख ७ वचन दुख ८ काया दुख । वेदनीय कर्म २२ प्रकारे बांधे इसमें शाता वेदनीय १० प्रकारे बांधे * १ पाणाणु कंपियाए २ भूयाणु कंपियाए * १ प्राणी अनुकम्पा २ भूत अनुकम्पा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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