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________________ (१२६ ) भोकडा संग्रह। है जैसे राजा का भंडारी भंडार ( खजाना) को रखता है। आठ कर्म की प्रकृति तथा पाठ कर्मों का बन्ध कितने प्रकार से होता है व कितने प्रकार से वे भोगे जाते हैं, तथा आठ कर्मों की स्थिति आदि: १ ज्ञानावरणीय कर्म ज्ञानावरणीय कर्म की पांच प्रकृति १ मति ज्ञाना-- वरणीय २ श्रुत ज्ञानावरणीय ३ अवधि ज्ञानावरणीय ४ मनापर्यव ज्ञानावराय ५ केवल ज्ञानावणीय ।। ज्ञाना वरणीय कर्म छ प्रकारे बांधे-१ नाण-- प्पडिणियाए-ज्ञान तथा ज्ञानी का अवर्णवाद ले तो ज्ञानावरणीय कर्म बांध २ नाण निन्हणियाए ज्ञान देने वाले के नाम को छिपावे तो ज्ञाना वरणीय कर्म बांधे ३ नाण अन्तरायेणं-ज्ञान में (प्राप्त करने में ) अन्तराय ( बाधा ) डाले तो ज्ञानावरणीय कर्म बांधे ४ नाण पउसेणं-ज्ञान तथा ज्ञानी ९२ द्वेष करे तो ज्ञानावरणीय कर्म बांधे ५ नाण आसायणाए--ज्ञान तथा ज्ञानी की असानता (तिरस्कार, निरादर ) करे तो ज्ञानावरणीय कर्म बांधे ६ विसंपायण! जोगणं- ज्ञानी के साथ खोटा ( झूठा) विवाद करे ज्ञानावरणीय में बांधे। ॥ ज्ञानावरणीय कर्म १० प्रकारे भोगवे॥ - १ श्रोत आवरण २ श्रोत विज्ञान आवरण ३ नेत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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