SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाठ कर्म की प्रकृति । ( १२५ ) * आठ कर्म की प्रकृति * आठ कमों के नाम-१ ज्ञानावरणीय २ दर्शना वरणीय ३ वेदनीय ४ मोहनीय ५ श्रायुष्य ६ नाम ७ गौत्र ८ अन्तराय। इनके लक्षण १ ज्ञानावरणीय कर्म-सूर्य को ढांकने वाले बादल के समान २ दर्शनावरणीय कर्म-- राजा के समीप पहुँचाने में जैसे द्वारपाल है उस ( द्वारपाल ) समान । ३ वेदनीय कर्म साता वेदनीय मधु लगी हुई तलवार की धार समान-जिसे चाटने से तो मीठी मालूम होवे परन्तु जीभ कटजावे । असाता वेदनीय अफीम लगी हुई खड़ग समान। ४ मोहनी कर्म-- दारू (शराब) समान। ५ श्रायुष्य कर्म-राजा की बेड़ी समान जो समय हुवे बिना छूट नहीं सके। ६ नाम कम-चीतारा (पेन्टर ) समान--जो विविध प्रकार के रुप बनाता है। ७ गोत्र कर्म-कुम्भकार के चक्र समान जो मिट्टी के पिंड को घूमाता है। ८ अन्तराय कर्म-सर्व शक्ति रूप लक्ष्मी को रखता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy