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चोचीस दण्डक ।
(१९५)
६ संज्ञा द्वार-पंज्ञा चार "" ७ लेश्या द्वार- लेश्या छः " " ८ इन्द्रिय द्वार-इन्द्रिय पांच " " ९ समुद्घात द्वार-समुद् घात सात" " १० सी द्वार-ये संज्ञी है। ११ वद द्वार-वेद तीन ही पावे १२ पर्याप्तिद्वार-इनमें पर्याप्ति छः अपर्याप्ति छ: २३ दृष्टि द्वार-" दृष्टि तीन १४ दर्शन "-" दर्शन चार १५ ज्ञान "-" ज्ञान पांच, अज्ञान तीन १६ योग "-" योग पन्द्रह १७ उपयोग"-" उपयोग बारह १८ श्राहार "--" आहार तीन प्रकार का
१६ उत्पति द्वार-मनुष्य गर्भज में-तैजम् , वायु काय को छोड़ कर शेष बावीश दंडक का आवे ।
२२ चवन द्वार:-चोवीश ही दण्डक में जावे-ऊपर कहे अनुसार।
__२० स्थिति द्वार अवसर्पिणी काल में पहिले आरेलगते तीन पल्यकी स्थिति उतरते आरे दो पल्यकी दूसरे " " दो " " " "एक" " तीसरे " " एक "" " " "करोड पूर्व" चौथे " " करोड़ पूर्व " " " "२००वर्ष उणी
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