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________________ ( ११० ) २३ गति द्वार २४ गति द्वार बे इन्द्रिय, त्री इन्द्रिय, चौरिन्द्रिय में दो गति- मनुष्य और तिर्येच का आवे और दो गति मनुष्य तिर्थच में जावे । तिर्यच संमूर्छिम पंचेन्द्रिय में दो-मनुष्य और तिर्यच-गति का जावे और चार गति में जावे १ नरक २ तिच ३ मनुष्य ४ देव । ॥ इति तीन विकलेन्द्रिय और तिर्यंच संमूर्व्विम ॥ तिर्यंच गर्भज पंचेंद्रिय का एक डंडक ( १ ) शरीर :- तिर्यच गर्भेज पंचद्रिय में शरीर ४:१ दोरिक २ वैक्रियक ३ तेजस ४ कार्मण ( २ ) अवगाहना । थोकडा संग्रह | गाथाः - जोयण सहस्सं च गाउ आईं ततो जोयण सहस्सं गाउ पुहृत्तं भुजये घरगुह पुहुत्तं च पक्खीसु । जलचरकी - जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट एक हजार योजन की । स्थलचरकी :- जघन्य अंगुल के श्रसंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट छ गाउकी । उरपरी सर्प की: - जघन्य Jain Education International अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट एक हजार योजन की । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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