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चोवीस दण्डक ।
(१११ )
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भुजपरीसर्पकीः जघन्य अंगुल के असंख्यातवें
भाग, उत्कृट प्रत्येक गाउकी। खेचरकी:-जघन्य अंगुल के असंख्यातवें
भाग, उत्कृष्ट प्रत्येक धनुष्यकी। उत्तर वैक्रिय करे तो जघन्य अंगुल के अंसख्यातवें साग उत्कृष्ट ६००
योजनकी। (३) संघयन द्वार:-तिर्थच गर्भज पंचीद्रयमें संघयन छ। (४) संस्थान द्वार:-संस्थान छ । (५) कषाय द्वार:-कषाय चार । (६) संज्ञा द्वार:-संज्ञा चार । (७) लेश्या द्वार:-लेश्या छ। (८) इंद्रिय द्वारः- इंद्रिय पांच । (8) समुद्घात द्वार:--समुद्घात पांच:-१ बेदनीय २
वषाय ३ मारणांतिक ४ क्रिय
५ तेजस्।
(१०) संज्ञी द्वार:-संज्ञी। (११) वेद द्वार:-वेद तीन । (१२) पर्याप्ति द्वार:-पर्याप्ति छ और अपर्याप्ति छ । (१३) दृष्टि द्वार:- दृष्टि तीन । (१४) दर्शन द्वार:-दर्शन तीन: -१ चनु दर्शन र अचच
दर्शन ३ अवधि दर्शन।
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