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________________ चोवीस दराडक। , ८.१०५) बे इन्द्रिय, त्रेन्द्रिय, चौरिन्द्रिय और तिर्यच संमूर्छिम पंचेन्द्रि के दण्डक शरीर द्वार:बेइन्द्रिय, त्रेन्द्रिय, चौरिन्द्रिय व तिर्यच संमूर्छिम पंचेन्द्रिय में शरीर तीन १ औदारिक २ तैजम् ३ कामण । २ अवगाहन द्वार:बेइन्द्रिय की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट बारह योजन की । इन्द्रिय की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट तीन गाउ (६ मील) की । चौरिन्द्रिय की जघन्य अगुंल के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट चार गाउ की । तिथंच संमूर्छिम पंचेन्द्रिय की ज. अंगुल के असंख्यातवें भाग. उ. नीचे अनुसार:गाथा-जोयण सहस्स, गाउअ पुहृत्तं तत्तो जोयण पुत्तं; दोण्हं तु धणुह पुहुत्तं समूछीमें होइ उच्चत्तं. १ जल चर की एक हजार योजन की। २ स्थलचर की प्रत्येक गाउ की (दो से नव गाउ तक की) ३ उरपर (सर्प) की प्रत्येक योजन की (दो से नव योजन तक) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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