________________
( १०६ )
४ भुजपर (सर्प) की प्रत्येक धनुष्य की ( दो से नव धनुष्य तक की )
५ खेचर की प्रत्येक धनुष्य की (दा से नव धनुष्य की) ३ संघयन द्वार:
तीन विकलेन्द्रिय ( बेइन्द्रिय वैन्द्रिय चौरिन्द्रिय ) और तीर्थंच समूमि पंचेन्द्रिय में संघयन एक-सेवार्त्त ।
४ संस्थान द्वार:
तीन विकलेन्द्रिय और मूर्छिम पंचेन्द्रिय में संस्थान
एक - हुण्डक ।
५ कषाय द्वार:
कषाय चार ही पावे ।
६ संज्ञा द्वार:
संज्ञा चार ही पावे ।
थोकडा संग्रह |
७ लेश्या द्वार:
लेश्या तीन पावे १ कृष्ण २ नील ३ कापोत / ८ इन्द्रिय द्वार:
Jain Education International
amb
बेइन्द्रिय में दो इन्द्रिय-१ स्पर्शेन्द्रिय २ रसेन्द्रिय (मुख) त्रेन्द्रिय में तीन इन्द्रिय १ स्पर्शेन्द्रिय २ रसेन्द्रिय ३ घ्राणेन्द्रिय । चौरिन्द्रिय में चार इन्द्रिय-१ स्पर्शेन्द्रिय २ रसेन्द्रिय ३ घ्राणेन्द्रिय ४ चतु इन्द्रिय |
तिर्यंच संमूर्छिम में पांच इन्द्रिय- १ स्पर्शेन्द्रिय २ सेन्द्रिय ३ घ्राणेन्द्रिय ४ चक्षुः न्द्रिय ५ श्रुतन्द्रिय ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org