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________________ (१०४) . थोकडा संग्रह । एकेन्द्रिय तीन विकलेन्द्रिय, मनुष्य व तिर्यच एव दश दण्डक। तेजस् काय, वायु काय में दश दण्डक का आवेपांच एकेन्द्रिय, तीन विकलेन्द्रिय, मनुष्य, तिथंच-एवं दश और नव दण्ड क में जावे,मनुष्य छोड़ कर शेष ऊपर समान। २० स्थिति द्वार:पृथ्वी काय की स्थिति जघन्य अन्तर मुहूर्त की उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष की । अप् काय की जवन्य अन्तर : हूत की उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की । तेजम् काय की ज. अन्तर मुहूर्त की उ. तीन अहोरात्रि की । वायु काय की ज. अन्तर मुहूर्त की उ. तीन हजार वर्ष की । वनस्पति काय की ज. अन्तर सुहूर्त की उ. दश हजार वर्ष की । २१ मरण द्वार:इनमें समाहिया मरण और असमोहिया मरण दोनों होते हैं। - २३ प्रागति द्वार २४ गति द्वार:- पृथ्वी काय,अप काय,वनस्पति काय,इन तीन एकेन्द्रिय में तीन-१ मनुष्य २ तिर्थच ३ देव-गति का आवे और १ मनुष्य २ तीर्थच-दो गति में जावे। तेजस और वायु काय में १ मनुष्य २ तिर्थच दो गति का आवे और तिथंच एक गति में जावे। ॥ इति पांच एकेन्द्रिय का पांच दण्डक सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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