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________________ चोवीस दण्डक । भवन पति, वाण व्यन्तर में - संज्ञा, श्रसंज्ञी | ज्योतिषी से अनुत्तर विमान तक संज्ञी | ११ वेद द्वारः- नरक में नपुंपक वेद, भवन पति, वाण व्यन्तर, ज्योतिषी, तथा पहले दूसरे देवलोक में १ स्त्री वेद २ पुरुष वेद शेष देवलोक में १ पुरुष वेद । १२ पति द्वार: ( १५ ) ( भाषा, व मन दोनों एक साथ बांधते हैं ) नरक में पर्याप्त पांच और अपर्याप्त पांच, देवलोक में पर्याप्त पांच और पर्याप्त पांच | १३ दृष्टि द्वार : - नरक में दृष्टि तीन, भवन पति से बारहवें देवलोक तक दृष्टि तीन, नव ग्रीयवेक में दृष्टि दो ( मिश्र दृष्टि छोड़ कर ) पांच अनुत्तर विमान में दृष्टि १ सम्बगू दृष्टि । १४ दर्शन द्वार: नरक में दर्शन दीन- १ चक्षु दर्शन २ श्रचतु दर्शन ३ अवधि दर्शन | देवलोक में दर्शन तीन - १ चक्षु दर्शन २ श्रचतु दर्शन. ३ अवधि दर्शन | १५ ज्ञान द्वारः नरक में तीन ज्ञान व तीन अज्ञान । भवन पति से नव www.jainelibrary.org Jain Education International - For Private & Personal Use Only
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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