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थोकडा संग्रह |
भवन पति व वाणत्र्यन्तर में चार लेश्या १ कृष्ण २ नील ३ कापोत ४ तेजो ।
ज्योतिषी, पहेला व दूसरा देवलोक में - १ तेजोलेश्या । तीसरे, चौथे व पांचवें देवलोक में - १ पद्म लेश्या । छठे देवलोक से नववेक (ग्रीयवेक) तक १ शुक्ल लेश्या । पांच अनुत्तर विधान में - १ परम शुक्ल लेश्या । ८ इन्द्रिय द्वार:
नरक में पांव व देवलोक में पांच इन्द्रिय ।
६ समुद्र घात द्वारः
नरक में चार ३ मारणान्तिक ४ वैक्रिय ।
मुद्धात १ वेदनीय २ कषाय
देवताओं में पांच-१ वेदनीय २ कषाय ३ मारणांतिक ४ वैपि ५ तेजस् ।
भवन पति से बारहवें देवलोक तक पांच समुद्घात नवग्रीयवेक से पांच अनुत्तर विमान तक तीन समुद्घात १ वेदनीय २ का ३ मारणांतिक ।
१० संज्ञी द्वार:--
पहली नरक में संज्ञी व * श्रसंज्ञी और शेष नरकों में संज्ञी |
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* ज्ञ तिर्यञ्च मर कर इस गति में उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्ता दशा में संज्ञी है। पर्याप्ता होने बाद अवधि तथा विभंग ज्ञान उत्पन्न होता है । इस अपेक्षा से समझना चाहिये ।
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