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________________ ( ६४ ) थोकडा संग्रह | भवन पति व वाणत्र्यन्तर में चार लेश्या १ कृष्ण २ नील ३ कापोत ४ तेजो । ज्योतिषी, पहेला व दूसरा देवलोक में - १ तेजोलेश्या । तीसरे, चौथे व पांचवें देवलोक में - १ पद्म लेश्या । छठे देवलोक से नववेक (ग्रीयवेक) तक १ शुक्ल लेश्या । पांच अनुत्तर विधान में - १ परम शुक्ल लेश्या । ८ इन्द्रिय द्वार: नरक में पांव व देवलोक में पांच इन्द्रिय । ६ समुद्र घात द्वारः नरक में चार ३ मारणान्तिक ४ वैक्रिय । मुद्धात १ वेदनीय २ कषाय देवताओं में पांच-१ वेदनीय २ कषाय ३ मारणांतिक ४ वैपि ५ तेजस् । भवन पति से बारहवें देवलोक तक पांच समुद्घात नवग्रीयवेक से पांच अनुत्तर विमान तक तीन समुद्घात १ वेदनीय २ का ३ मारणांतिक । १० संज्ञी द्वार:-- पहली नरक में संज्ञी व * श्रसंज्ञी और शेष नरकों में संज्ञी | Jain Education International * ज्ञ तिर्यञ्च मर कर इस गति में उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्ता दशा में संज्ञी है। पर्याप्ता होने बाद अवधि तथा विभंग ज्ञान उत्पन्न होता है । इस अपेक्षा से समझना चाहिये । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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