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________________ चोवीस दण्डक । (६३) वैक्रिय करे तो जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग, उत्कृष्ट लक्ष योजन की। ___ नव ग्रेवेक तथा पांच अनुत्तर विमान के देव उत्तर वैक्रिय नहीं करते। ३ संघयन द्वार। नरक के नेरिये असंघयनी । देव असंघयनी। ४ संस्थान द्वार। नरक में हुएडक संस्थान वं देवलोक के देवों का समचतुरस्त्र संस्थान । ५ कषाय द्वार। नरक में चार कषाय व देवलोक में भी चार । ६संज्ञा द्वार:नारकी में संज्ञा चार, देवलोक में संज्ञा चार । ७ लेश्या द्वार:नारकी में लेश्या तीन: पहली दूसरी नरक में कापोत लेश्या। तीसरी नरक में कापोत व नील लेश्या । चौथी नरक में नील लेश्या। पांचवीं नरक में कृष्ण व नील लेश्या । • छठी नरक में कृष्ण लेश्या । • सातवीं नरकं में महाकृष्ण लेश्या । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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