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उत्तराध्ययन सूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन ९३ ये हैं । सूक्ष्म जीव सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हैं और स्थूल जीव लोक के कुछ भागों होते हैं । स्थूल पृथ्वी के मृदु और कठिन ये दो प्रकार हैं। मृदु पृथ्वी के सात प्रकार हैं तो कठिन पृथ्वी के छत्तीस प्रकार हैं । स्थूल जल के पाँच प्रकार हैं, स्थूल वनस्पति के प्रत्येकशरीर और साधारणशरीर ये दो प्रकार हैं । जिनके एक शरीर में एक जीव स्वामी रूप में होता है, वह प्रत्येकशरीर है। जिसके एक शरीर में अनन्त जीव स्वामी रूप में होते हैं, वह साधारणशरीर है। प्रत्येकशरीर वनस्पति के बारह प्रकार हैं तो साधारणशरीर वनस्पति के अनेक प्रकार हैं।
तस जीवों के इन्द्रियों की अपेक्षा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय ये चार प्रकार हैं ३१० द्वन्द्र आदि अभिप्रायपूर्वक गमन करते हैं। वे आगे भी बढ़ते हैं तथा पीछे भी हटते हैं। संकुचित होते हैं, फैलते हैं, भयभीत होते हैं, दौड़ते हैं । उनमें गति और आगति दोनों होती हैं । वे सभी तस हैं । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जीव सम्मूर्च्छिमज होते हैं। पंचेन्द्रिय जीव सम्मूर्च्छिज और गर्भज ये दोनों प्रकार के होते हैं। गति की दृष्टि से पंचेन्द्रिय के नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य और देव ये चार प्रकार हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यंच के जलचर, स्थलचर, खेचर ये तीन प्रकार हैं । ३११ जलचर के मत्स्य, कच्छप आदि अनेक प्रकार हैं । स्थलचर की चतुष्पद और परिसर्प ये दो मुख्य जातियाँ हैं । ३१२ चतुष्पद के एक खुर वाले, दो खुर वाले, गोल पैर वाले, नख सहित पैर वाले ये चार प्रकार हैं। परिसर्प की भुजपरिसर्प, उरपरिसर्प ये दो मुख्य जातियाँ हैं । खेचर की चर्मपक्षी, रोमपक्षी, समुद्गकपक्षी और विततपक्षी ये चार मुख्य जातियाँ हैं ।
जीव के संसारी और सिद्ध ये दो प्रकार भी हैं । कर्ममुक्त जीव संसारी और कर्मयुक्त सिद्ध हैं। सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र तथा सम्यक् तप से जीव कर्मबन्धनों से मुक्त बनता है। सिद्ध जीव पूर्ण मुक्त होते हैं, जबकि संसारी जीव कर्ममुक्त होने के कारण नाना रूप धारण करते रहते हैं।
षट्द्रव्यों में जीव और पुद्गल ये दो द्रव्य ही सक्रिय हैं, शेष चारों द्रव्य निष्क्रिय हैं। जीव और पुद्गल ये दोनों द्रव्य कथंचित् विभाव रूप में परिणमते हैं। शेष चारों द्रव्य सदा-सर्वदा स्वाभाविक परिणमन को ही लिये रहते हैं । धर्म, अधर्म, आकाश, ये तीनों द्रव्य संख्या की दृष्टि से एक-एक हैं। कालद्रव्य असंख्यात हैं। जीवद्रव्य अनन्त हैं और पुद्गलद्रव्य अनन्तानन्त हैं । जीव और पुद्गल इन दो द्रव्यों में संकोच और विस्तार होता है किन्तु शेष चार द्रव्यों में
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