________________
उत्तराध्ययनसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * ७७*
अनुशासनहीनता का प्रतीक : अविनय
सत्ताईसवें अध्ययन में दुष्ट बैल की उद्दण्डता के माध्यम से अविनीत शिष्य का चित्रण किया गया है। संघ-व्यवस्था के लिए अनुशासन आवश्यक है। विनय अनुशासन का अंग है तो अविनय अनुशासनहीनता का प्रतीक है। जो साधक अनुशासन की उपेक्षा करता है वह अपने जीवन को महान् नहीं बना सकता। गर्गगोत्रीय गार्ग्य मुनि एक विशिष्ट आचार्य थे, योग्य गुरु थे किन्तु उनके शिष्य उद्दण्ड, अविनीत और स्वच्छन्द थे। उन शिष्यों के अभद्र व्यवहार से समत्व-साधना में विघ्न उपस्थित होता हुआ देखकर आचार्य गार्ग्य उन्हें छोड़कर एकाकी चल दिये। अनुशासनहीनता अविनीत शिष्य दुष्ट बैल की भाँति होता है जो गाड़ी को तोड़ देता है और स्वामी को कष्ट पहुँचाता है। इसी तरह अविनीत शिष्य आचार्य और गुरुजनों को कष्टदायक होता है। उत्तराध्ययननियुक्ति में अविनीत शिष्य के लिए दंश-मशक, जलोका, वृश्चिक प्रभृति विविध उपमाओं से अलंकृत किया है। इस अध्ययन में जो वर्णन है वह प्रथम अध्ययन 'विनयश्रुत' का ही पूरक है।
प्रस्तुत अध्ययन की निम्न गाथा की तुलना बौद्ध ग्रन्थ की थेरगाथा से की जा सकती है
"खलुका जारिसा जोजा, दुस्सीसा वि हु तारिसा।
जोइया धम्मजाणम्मि, भन्जन्ति धिइदुब्बला॥" -उत्तराध्ययन २७/८ तुलना कीजिए
"ते तथा सिक्खित्ता बाला, अजमजमगारवा।
नादयिस्सन्ति उपज्झाये, खलुंको विय सारथिं॥" -थेरगाथा ९७९ मोक्षमार्ग : एक परिशीलन ___ अट्ठाईसवें अध्ययन में मोक्षमार्गगति का निरूपण हुआ है। मोक्ष प्राप्य है और उसकी प्राप्ति का उपाय मार्ग है। प्राप्ति का उपाय जब तक नहीं मिलता तब तक प्राप्य प्राप्त नहीं होता। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप ये मोक्ष-प्राप्ति के साधन हैं। इन साधनों की परिपूर्णता ही मोक्ष है। जैन आचार्यों ने तप का अन्तर्भाव चारित्र में करके परवर्ती-साहित्य में त्रिविध साधना का मार्ग प्रतिपादित किया है। आचार्य उमास्वाति ने सम्यग्क् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र को मोक्षमार्ग कहा है।४९ आचार्य कुन्दकुन्द ने समयसार और नियमसार में,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org