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* ७० * मूलसूत्र : एक परिशीलन
पद्मावती थी। उसके उग्रसेन, महासेन और देवसेन ये तीन पुत्र हुए।२१४ उत्तरपुराण में देवसेन के स्थान पर महाद्युतिसेन नाम आया है। उनके एक पुत्री भी थी, जिसका नाम गांधारी था।
अन्धक-कुल के नेता समुद्रविजय के अरिष्टनेमि, रथनेमि, सत्यनेमि और दृढ़नेमि ये चार पुत्र थे। वासुदेव श्रीकृष्ण आदि अंधकवृष्णि-कुल के नेता वसुदेव के पुत्र थे। वैदिक-साहित्य में इनकी वंशावली पृथक् रूप से मिलती है।२१६ इस अध्ययन में भोज, अन्धक और वृष्णि इन तीन कुलों का उल्लेख हुआ है। भोजराज शब्द राजीमती के पिता समुद्रविजय के लिए प्रयुक्त हुआ है। वासदेव श्रीकृष्ण का अरिष्टनेमि के साथ अत्यन्त निकट का सम्बन्ध था। वे अरिष्टनेमि के चचेरे भाई थे। उन्होंने राजीमती को दीक्षा ग्रहण करते समय जो आशीर्वाद दिया था वह ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है और साथ ही श्रीकृष्ण के हृदय की धार्मिक भावना का भी प्रतीक है। वह आशीर्वाद इस प्रकार से है
___"संसारसागरं घोरं, तर कन्ने ! लहुं लहुं।" अर्थात् हे कन्ये ! तू घोर संसार-सागर को शीघ्रता से पार कर।१७
इस अध्ययन की सबसे बड़ी महत्त्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि पथभ्रष्ट पुरुष को नारी सही मार्ग पर लाती है। उसका नारायणी रूप इसमें उजागर हुआ है। नारी वासना की दास नहीं, किन्तु उपासना की ओर बढ़ने वाली प्रेरणा की स्रोत भी है। जब वह साधना के पथ पर बढ़ती है तो उसके कदम आगे से आगे बढ़ते ही चले जाते हैं। वह अपने लक्ष्य पर बढ़ना भी जानती है। समस्याएँ और समाधान
तेवीसवें अध्ययन में भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा के तेजस्वी नक्षत्र केशीकुमार श्रमण और भगवान महावीर के प्रमुख शिष्य गणधर गौतम का ऐतिहासिक संवाद है। भगवान पार्श्व तेवीसवें तीर्थंकर थे। भगवान महावीर ने 'पुरुषादानीय' शब्द का प्रयोग पार्श्वनाथ के लिए किया है। यह उनके प्रति आदर का सूचक है। भगवान पार्श्व के हजारों शिष्य भगवान महावीर के समय विद्यमान थे। भगवती में 'कालास्यवैशिक' अनगार,२१८ 'गांगेय' अनगार२१९ तथा अन्य अनेक स्थविर२२० और सूत्रकृतांग२२१ में 'उदकपेढाल' आदि पार्श्वपत्य श्रमणों ने भगवान महावीर के शासन को स्वीकार किया था। प्रस्तुत अध्ययन में पाश्र्वापत्य श्रमणों में और भगवान महावीर के श्रमणों में जिन बातों को लेकर अन्तर था, उसका निरूपण है। यह निरूपण ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत
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