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________________ उत्तराध्ययन सूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन ६९ में विस्तार से इस विषय का निरूपण है । प्रस्तुत अध्ययन में उस युग की राज्य-व्यवस्था का भी उल्लेख है। भारत में उस समय अनेक छोटे-मोटे राज्य थे। उनमें परस्पर संघर्ष भी होता था । अतः मुनि को उस समय सावधानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने का सूचन किया गया है। अरिष्टनेमि और राजीमती बाईसवें अध्ययन में अन्धक -कुल के नेता समुद्रविजय के पुत्र रथनेमि का वृत्तान्त है । रथनेमि अरिष्टनेमि अर्हत् के लघु भ्राता थे । राजीमती, जिनका वैवाहिक सम्बन्ध अरिष्टनेमि से तय हुआ था किन्तु विवाह के कुछ समय पूर्व ही अरिष्टनेमि को वैराग्य हो गया और वे मुनि बन गये । अरिष्टनेमि के प्रव्रजित होने के पश्चात् रथनेमि राजीमती पर आसक्त हो गये । किन्तु राजीमती का उपदेश श्रवण कर रथनेमि प्रव्रजित हुए। एक बार पुनः रैवतक पर्वत पर वर्षा से प्रताड़ित साध्वी राजीमती को एक गुफा में वस्त्र सुखाते समय नग्न अवस्था में देखकर रथनेमि विचलित हो गये । राजीमती के उपदेश से वे पुनः सँभले और अपने दुष्कृत्य पर पश्चात्ताप करते हैं । २१३ जैन - साहित्य के अनुसार राजीमती उग्रसेन की पुत्री थी । विष्णुपुराण के अनुसार उग्रसेन की चार पुत्रियाँ थीं - कंसा, कंसवती, सुतनु और राष्ट्रपाली इस नामावली में राजीमती का नाम नहीं आया है। यह बहुत कुछ सम्भव है - सुतनु ही राजीमती का अपरनाम रहा हो। क्योंकि प्रस्तुत अध्ययन की ३७वीं गाथा में रथनेमि राजीमती को 'सुतनु' नाम से सम्बोधित करते हैं। प्रस्तुत अध्ययन में अन्धकवृष्णि शब्द का प्रयोग हुआ है। जैन हरिवंशपुराण के अनुसार यदुवंश का उद्भव हरिवंश से हुआ है । यदुवंश में नरपति नाम का एक राजा था। उसके शूर और सुवीर ये दो पुत्र थे । सुवीर को मथुरा का राज्य दिया गया और शूर को शौर्यपुर का । अन्धकवृष्णि आदि शूर के पुत्र थे और भोजकवृष्णि आदि सुवीर के पुत्र थे । अन्धकवृष्णि की प्रमुख रानी का नाम सुभद्रा था। उनके दस पुत्र हुए, जो निम्नलिखित हैं(१) समुद्रविजय, (२) अक्षोभ्य, (३) स्तमितसागर, (४) हिमवान्, (५) विजय, ( ६ ) अचल, (७) धारण, (८) पूरण, (९) अभिचन्द्र, तथा (१०) वसुदेव। ये दसों पुत्र दशार्ह के नाम से विश्रुत हैं । अन्धकवृष्णि की (१) कुन्ती, तथा (२) मद्री । ये दो पुत्रियाँ थीं । भोजकवृष्णि की मुख्य पत्नी www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002996
Book TitleMulsutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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