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* ६८ * मूलसूत्र : एक परिशीलन ___ बौद्ध जातक-साहित्य में ऐसे जहाजों का वर्णन है जिनमें पाँच सौ व्यापारी एक साथ यात्रा करते थे।९८ विनयपिटक में 'पूर्ण' नाम के एक व्यापारी का उल्लेख है जिसने छह बार समुद्र-यात्रा की थी। संयुक्तनिकाय,९९ अंगुत्तरनिकाय२०० में वर्णन है कि छह-छह मास तक नौकाओं द्वारा समुद्र-यात्रा की जाती थी। दीघनिकाय२०१ में यह भी वर्णन है मि समुद्र-यात्रा करने वाले व्यापारी अपने साथ कुछ पक्षी रखते थे। जब जहाज समुद्र में बहुत दूर पहुँच जाता और आसपास में कहीं पर भी भूमि दिखाई नहीं देती तब उन पक्षियों को आकाश में छोड़ दिया जाता। यदि टापू कहीं सन्निकट होता तो वे पक्षी लौटकर नहीं आते और दूर होने पर वे पुनः इधर-उधर आकाश में चक्कर लगाकर आ जाते थे।
भगवान ऋषभदेव ने जलपोतों का निर्माण किया था।२०२ जैन-साहित्य में जलपत्तन के अनेक उल्लेख मिलते हैं।२०३ सूत्रकृतांग,२०४ उत्तराध्ययन२०५ आदि आगम-साहित्य में कठिन कार्य की तुलना समुद्र-यात्रा से की है। वस्तुतः उस युग में समुद्र-यात्रा अत्यधिक कठिन थी।
सूत्रकृतांग२०६ में लेप नामक गाथापति का उल्लेख है, जिसके पास अनेक यान थे। सिंहलद्वीप, जावा, सुमात्रा प्रभृति स्थलों पर अनेक व्यापारीगण जाया करते थे। ज्ञाताधर्मकथासूत्र २०७ में जिनपालित और जिनरक्षित गाथापति का वर्णन है, जिन्होंने बारह बार समुद्र-यात्रा की थी। अरणक श्रावक आदि के यात्रा-वर्णन भी ज्ञाताधर्मकथा में हैं।२०८ व्यापारीगण स्वयं के यानपात्र भी रखते थे, जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक माल लेकर जाते थे। उसमें स्वर्ण, सुपारी आदि अनेक वस्तुएँ होती थीं। उस समय भारत में स्वर्ण अत्यधिक मात्रा में था, जिसका निर्यात दूसरे देशों में होता था। इस प्रकार सामुद्रिक व्यापार बहुत उन्नत अवस्था में था।
इस अध्ययन में यह भी बताया है कि उस युग में जो व्यक्ति तस्कर-कृत्य करता था, उसको उग्र दण्ड दिया जाता था। वध-भूमि में ले जाकर वध किया जाता था। वह लाल वस्त्रों से आवेष्टित होता, उसके गले में लाल कनेर की माला होती, जिससे दर्शकों को पता लग जाता कि इसने अपराध किया है। वह कठोर दण्ड इसलिये दिया जाता कि अन्य व्यक्ति इस प्रकार के अपराध करने का दुस्साहस न करें। तस्करों की तरह दुराचारियों को भी शिरोमुण्डन, तर्जन, ताडन, लिङ्गच्छेदन, निर्वासन और मृत्यु प्रभृति विविध दण्ड दिये जाते थे। सूत्रकृतांग,२०९ निशीथचूर्णि,२१° मनुस्मृति,२११ याज्ञवल्क्यस्मृति२१२ आदि
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