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उत्तराध्ययनसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन *६३ *
प्रस्तुत रुद्रायण प्रकरण बौद्ध-साहित्य में बाद में आया है क्योंकि हीनयान परम्परा के ग्रन्थों में यह वर्णन प्राप्त नहीं है। महायानी परम्परा के त्रिपिटक, जो संस्कृत में हैं, उनमें यह वर्णन सम्प्राप्त है। डॉ. पी. एल. वैद्य का अभिमत है कि दिव्यावदान की रचना ई. सन २०० से ३५० तक के मध्य में हई है। इसीलिए जैन परम्परा के उदायन को ही बौद्ध परम्परा में रुदायणावदान के रूप में परिवर्तित किया है। दोनों ही परम्पराओं में एक ही व्यक्ति दीक्षित कैसे हो सकता है ? बौद्ध परम्परा की अपेक्षा जैन परम्परा का ‘उदायण प्रकरण' अधिक विश्वस्त है।
प्रस्तुत अध्ययन में उदायन का केवल नाम निर्देश ही हुआ है। हमने दोनों ही परम्पराओं के आधार से संक्षेप में उल्लेख किया है।
काशीराज का नाम नन्दन था और वे सातवें बलदेव थे। वे वाराणसी के राजा अग्निशिख के पुत्र थे। इनकी माता का नाम जयन्ती और लघु भ्राता का नाम दत्त था। _ 'विजय' द्वारकावती नगरी के राजा ब्रह्मराज के पुत्र थे। इनकी माता का नाम सुभद्रा तथा लघु भ्राता का नाम द्विपृष्ठ था। नेमिचन्द्र ने उत्तराध्ययनवृत्ति में लिखा है-आवश्यकचूर्णि में 'नन्दन' और 'विजय' इनका उल्लेख है। हम उसी के अनुसार उनका यहाँ पर वर्णन दे रहे हैं। यदि यहाँ पर वे दोनों व्यक्ति दूसरे हों तो आगम-साहित्य के मर्मज्ञ उनकी अन्य व्याख्या कर सकते हैं।८५ इससे यह स्पष्ट है कि नेमिचन्द्र को इस सम्बन्ध में अनिश्चितता थी। शान्त्याचार्य ने अपनी टीका में इस सम्बन्ध में कोई चिन्तन प्रस्तुत नहीं किया है। काशीराज
और विजय के पूर्व उदायन राजा का उल्लेख हुआ है, जो श्रमण भगवान महावीर के समय में हुए थे। उनके बाद बलदेवों का उल्लेख संगत प्रतीत नहीं होता। क्योंकि प्रस्तुत अध्ययन में पहले तीर्थंकर, चक्रवर्ती और राजाओं के नाम क्रमशः आये हैं, इसीलिए प्रकरण की दृष्टि से महावीर युग के ही ये दोनों व्यक्ति होने चाहिए। स्थानांगसूत्र ८६ में भगवान महावीर के पास आठ राजाओं ने दीक्षा ग्रहण की, उसमें काशीराज शंख का भी नाम है। सम्भव है, काशीराज से शंख राजा का यहाँ अभिप्राय हो। भगवान महावीर के पास प्रव्रज्या ग्रहण करने वाले राजाओं में विजय नाम के राजा का उल्लेख नहीं है। पोलासपुर में विजय नाम के राजा थे। उनके पुत्र अतिमुक्तकुमार ने भगवान महावीर के पास दीक्षा ली, परन्तु उनके पिता ने भी दीक्षा ली, ऐसा उल्लेख प्राप्त नहीं है। विजय नाम का एक अन्य राजा भी भगवान महावीर के समय हुआ था, जो
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