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* ६२ * मूलसूत्र : एक परिशीलन
थे। वैशाली के गणतन्त्र के राजा चेटक की पुत्री उदायन की पटरानी थी। भगवतीसूत्र में उदायन का प्रसंग प्राप्त है। उदायन का पुत्र अभीचकुमार निर्ग्रन्थ धर्म का उपासक था। राजा उदायन ने अपना राज्य अभीचकुमार को न देकर अपने भानजे केशी को दिया। 'केशी' को राज्य देने का कारण यही था कि वह राज्य में आसक्त होकर कहीं नरक न जाये। किन्तु राज्य न देने के कारण अभीचकुमार के मन में द्रोह उत्पन्न हुआ। उदायन को, उसकी दिवंगत धर्मपत्नी जो देवी बनी थी वह स्वर्ग से आकर धर्म की प्रेरणा प्रदान करती है। राजा उदायन को दीक्षा प्रदान करने के लिए श्रमण भगवान महावीर मगध से विहार कर सिन्धु-सौवीर पधारते हैं। उदायन मुनि उत्कृष्ट तप का अनुष्ठान प्रारम्भ करते हैं। स्वाध्याय और ध्यान में अपने आपको पूर्ण रूप से समर्पित कर देते हैं। दीर्घ तपस्या तथा अरस-नीरस आहार से उनका शरीर अत्यन्त कृश हो चुका था, शारीरिक बल क्षीण होने से रुग्ण रहने लगे। जब रोग ने उग्र रूप धारण किया तो स्वाध्याय, ध्यान आदि में विघ्न उपस्थित हुआ। वैद्यों ने दही के प्रयोगे का परामर्श दिया। राजर्षि ने देखा-वीतभय में गोकुल की सुलभता है। उन्होंने वहाँ से विहार किया और वीतभय पधारे। राजा केशी को मंत्रियों ने राजर्षि के विरुद्ध यह कहकर भड़काया कि राजर्षि राज्य छीनने के लिए आये हैं। केशी ने राजर्षि के शहर में आने का निषेध कर दिया। एक कुम्भकार के घर में उन्होंने विश्राम लिया। राजा केशी ने उन्हें मरवाने के लिए आहार में विष मिलवा दिया। पर रानी प्रभावती, जो देवी बनी थी, वह विष का प्रभाव क्षीण करती रही। एक बार देवी की अनुपस्थिति में विष-मिश्रित आहार राजर्षि के पात्र में आ गया। वे उसे शान्त भाव से खा गये। शरीर में विष व्याप्त हो गया। उन्होंने अनशन किया और केवलज्ञान की उन्हें प्राप्ति हुई। देवी के प्रकोप से वीतभय नगर धूलिसात् हो गया।८१
बौद्ध-साहित्य में भी राजा उदायन का वर्णन मिलता है। अवदान कल्पलता के अनुसार उनका नाम उद्रायण था।८२ दिव्यावदान के अनुसार रुद्रायण था।८३ आवश्यकचूर्णि में उदायन का नाम उद्रायण भी मिलता है।८४ वह सिन्धु-सौवीर देश का स्वामी था। उसकी राजधानी रोरूक थी। दिवंगत पत्नी ही उसे धर्ममार्ग के लिए उत्प्रेरित करती है। उद्रायण सिन्धु-सौवीर से चलकर मगध पहुँचता है। बुद्ध उसे दीक्षा प्रदान करते हैं। दीक्षित होने के बाद वे अपनी राजधानी में जाते हैं और दुष्ट अमात्यों की प्रेरणा से उनका वध होता है। बौद्ध दृष्टि से रुद्रायण ने अपना राज्य अपने पुत्र शिखण्डी को सौंपा था। अन्त में देवी के प्रकोप के कारण रोरूक धूमिसात् हो जाता है। विज्ञों का यह मन्तव्य है कि
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