________________
उत्तराध्ययनसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन *६१ *
.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.निहार रहे थे। उसी समय ग्वालों ने ब्रज का द्वार खोल दिया। दो साँड़ों ने कामुकता के अधीर होकर एक गाय का पीछा किया। दोनों परस्पर लड़ने लगे। एक के सींग से दूसरे साँड़ की आँतें बाहर निकल आईं और वह मर गया। राजा चिन्तन करने लगा-‘सभी प्राणी विकारों के वशीभूत होकर कष्ट प्राप्त करते हैं। ऐसा चिन्तन करते हुए वह प्रत्येकबोधि को प्राप्त हो गया। ___ नग्गति गांधार का राजा था। वह मंजरीविहीन आम्र-वृक्ष को निहारकर प्रत्येकबुद्ध हुआ। बौद्ध-साहित्य में भी 'नग्गजी' नाम के राजा का वर्णन है। वह गांधार राष्ट्र के तक्षशिला का अधिपति था। उसकी एक स्त्री थी। वह एक हाथ में एक कंगन पहनकर सुगन्धित द्रव्य को पीस रही थी। राजा ने देखा'एक कंगन के कारण न परस्पर रगड़ होती है और न ध्वनि ही होती है। उस स्त्री ने कुछ समय के बाद दूसरे हाथ से पीसना प्रारम्भ किया। उस हाथ में दो कंगन थे। परस्पर घर्षण से शब्द होने लगा। राजा सोचने लगा-'दो होने से रगड़ होती है और साथ ही ध्वनि भी। मैं भी अकेला हो जाऊँ जिससे संघर्ष नहीं होगा।' और वह प्रत्येकबुद्ध हो गया। ___ उत्तराध्ययन में जिन चार प्रत्येकबुद्धों का उल्लेख है, वैसा ही उल्लेख बौद्ध-साहित्य में भी हुआ है किन्तु वैराग्य के निमित्तों में व्यत्यय है। जैन कथा में वैराग्य का जो निमित्त नग्गति और नमि का है, वह बौद्ध कथाओं में करकण्डू और नग्गजी का है। उत्तराध्ययन सुखबोधावृत्ति में तथा अन्य ग्रन्थों में इन चार प्रत्येकबुद्धों की कथाएँ बहुत विस्तार के साथ आई हैं। उनमें अनेक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तथ्यों का संकलन है, जबकि बौद्ध कथाओं में केवल प्रतिबुद्ध होने के निमित्त का ही वर्णन है।
विण्टरनीत्ज का अभिमत है-जैन और बौद्ध-साहित्य में जो प्रत्येकबुद्धों की कथाएँ आई हैं, वे प्राचीन भारत के श्रमण-साहित्य की निधि हैं।'७८ प्रत्येकबुद्धों का उल्लेख वैदिक परम्परा के साहित्य में नहीं हुआ है। महाभारत७९ में जनक के रूप में जिस व्यक्ति का उल्लेख हुआ है, उसका उत्तराध्ययन में नमि के रूप में उल्लेख है। यद्यपि मूल पाठ में उनके प्रत्येकबुद्ध होने का उल्लेख नहीं है। यह उल्लेख सर्वप्रथम उत्तराध्ययननियुक्ति में हुआ है, उसके पश्चात् टीका-साहित्य में। उदायन : एक परिचय ... 'उदायन' सिन्धु-सौवीर जनपद के राजा थे। इनके अधीन सोलह जनपद, वीतभय आदि तीन सौ तिरेसठ नगर और महासेन आदि दस मुकुटधारी राजा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org