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उत्तराध्ययनसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * ५९ *
इधर-उधर निहारते हुए उसकी दृष्टि मुनि गर्दभाल पर गिरी। वे ध्यानमद्रा में थे। उन्हें देखकर राजा संजय भयभीत हुआ। वह सोचने लगा--"मैंने मनि की आशातना की है।' मुनि से क्षमा याचना की। मुनि ने जीवन की अस्थिरता, पारिवारिक जनों की असारता और कर्म-परिणामों की निश्चितता का प्रतिपादन किया जिससे राजा के मन में वैराग्य उत्पन्न हुआ और वह मुनि बन गया। एक बार एक क्षत्रिय मुनि ने संजय मुनि से पूछा-“आप कौन हैं ? आपका नाम और गोत्र क्या है ? किस प्रकार आचार्यों की सेवा करते हो ? कृपा करके बताइये।'' मुनि संजय ने संक्षेप में उत्तर दिया। उत्तर सुनकर मुनि बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने मुनि संजय को जैन प्रवचन में सुदृढ़ करने के लिए अनेक महापुरुषों के उदाहरण दिये। इस अध्ययन में अनेक चक्रवर्तियों का उल्लेख हुआ है। भरत चक्रवर्ती भगवान ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे। इन्हीं के नाम पर प्रस्तुत देश का नाम 'भारतवर्ष' हुआ। इन्होंने षट्खण्ड के साम्राज्य का परित्याग कर श्रमणधर्म स्वीकार किया था। दूसरे चक्रवर्ती सगर थे। अयोध्या में इक्ष्वाकुवंशीय राजा जितशत्रु का राज्य था। उसके भाई का नाम सुमित्रविजय था। विजया और यशोमती ये दो पत्नियाँ थीं। विजया के पुत्र का नाम अजित था, जो द्वितीय तीर्थंकर के नाम से विश्रुत हुए और यशोमती के पुत्र का नाम सगर था, जो द्वितीय चक्रवर्ती हुआ।
तृतीय चक्रवर्ती का नाम मघव था। ये श्रावस्ती नगरी के राजा समुद्रविजय की महारानी भद्रा के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। सनत्कुमार चतुर्थ चक्रवर्ती थे। ये कुरु जांगल जनपद में हस्तिनापुर नगर के निवासी थे। उनके पिता का नाम अश्वसेन और माता का नाम सहदेवी था। शान्तिनाथ हस्तिनापुर के राजा विश्वसेन के पुत्र थे। इनकी माता का नाम अचिरादेवी था। ये पाँचवें चक्रवर्ती हुए। राज्य का परित्याग कर श्रमण बने और सोलहवें तीर्थंकर हुए। कुन्थु हस्तिनापुर के राजा सूर के पुत्र थे। इनकी माता का नाम श्रीदेवी था। ये छठे चक्रवर्ती हुए। अन्त में राज्य का परित्याग कर श्रमण बने। तीर्थ की स्थापना कर सत्तरहवें तीर्थंकर हुए। 'अर' गजपुर के राजा सुदर्शन के पुत्र थे। इनकी माता का नाम देवी था। ये सातवें चक्रवर्ती हुए। राज्य-भार को छोड़कर श्रमणधर्म में दीक्षित हुए। तीर्थ की स्थापना करके अठारहवें तीर्थकर हुए। नवें चक्रवर्ती महापद्म थे। ये हस्तिनापुर के पद्मोत्तर राजा के पुत्र थे। उनकी माता का नाम झाला था। उनके दो पुत्र हुए-विष्णुकुमार और महापद्म। महापद्म नौवें चक्रवर्ती हुए। हरिसेण दसवें चक्रवर्ती हुए। ये काम्पिल्यपुर नगर के निवासी थे।
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