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उत्तराध्ययनसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * ४९ *
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कमलावती ने राजा से निवेदन किया-जैसे वमन हुए पदार्थों को खाने वाले व्यक्ति की प्रशंसा नहीं होती, वैसे ही ब्राह्मण के द्वारा परित्यक्त धन को ग्रहण करने वाले की प्रशंसा नहीं हो सकती। वह भी वमन खाने के सदृश है। आचार्य भद्रबाहु ने प्रस्तुत अध्ययन के राजा का नाम 'सीमन्धर' दिया है ५ तो वादीवैताल शान्तिसूरि ने लिखा है- 'इषुकार' यह राज्यकाल का नाम है तो 'सीमन्धर' राजा का मौलिक नाम होना सम्भव है।४७
हस्तीपाल जातक बौद्ध-साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। उसमें कुछ परिवर्तन के साथ यह कथा उपलब्ध है। हस्तीपाल जातक में कथावस्तु के आठ पात्र हैं। राजा ऐसुकारी, पटरानी, पुरोहित, पुरोहित की पत्नी, प्रथम पुत्र हस्तीमल, द्वितीय पुत्र अश्वपाल, तृतीय पुत्र गोपाल, चौथा पुत्र अजपाल, ये सब मिलाकर आठ पात्र हैं। ये चारों पुत्र न्यग्रोध वृक्ष के देवता के वरदान से पुरोहित के पुत्र होते हैं। चारों प्रव्रजित होना चाहते हैं। पिता उन चारों पुत्रों की परीक्षा करता है। चारों पुत्रों के साथ पिता का संवाद होता है। चारों पुत्र क्रमशः पिता को जीवन की नश्वरता, संसार की असारता, मृत्यु की अविकलता और कामभोगों की मोहकता का विश्लेषण करते हैं। पुरोहित भी प्रव्रज्या ग्रहण करता है। उसके बाद ब्राह्मणी प्रव्रज्या लेती है। अन्त में राजा और रानी भी प्रव्रजित हो जाते हैं।
सरपेण्टियर की दृष्टि से उत्तराध्ययन की कथा जातक के गद्य-भाग से अत्यधिक समानता लिए हुए है। वस्तुतः जातक से जैन कथा प्राचीन होनी चाहिए। डॉ. घाटगे का मन्तव्य है कि जैन कथावस्तु जातक कथा से अधिक व्यवस्थित, स्वाभाविकता और यथार्थता लिए हुए है। जैन कथावस्तु से जातक में संगृहीत कथावस्तु अधिक पूर्ण है। उसमें पुरोहित के चारों पुत्रों के जन्म का विस्तृत वर्णन है। जातक में पुरोहित के चार पुत्रों का उल्लेख है, तो उत्तराध्ययन में केवल दो का। उत्तराध्ययन में राजा और पुरोहित के बीच किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नहीं है, जबकि जातक में पुरोहित और राजा का सम्बन्ध है। पुरोहित राजा के परामर्श से ही पुत्रों की परीक्षा लेता है। स्वयं राजा भी उनकी परीक्षा लेने में सहयोग करता है। जैन कथा के अनुसार पुरोहित का कुटुम्ब दीक्षित होने पर राजा सम्पत्ति पर अधिकार करता है। उसका प्रभाव महारानी कमलावती पर पड़ता है और वह श्रमणधर्म को ग्रहण करना चाहती है तथा राजा को भी दीक्षित होने के लिए प्रेरणा प्रदान करती है। जैन कथावस्तु में जो ये तथ्य हैं, वे बहुत ही स्वाभाविक और यथार्थ हैं। जातक कथावस्तु में
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