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उत्तराध्ययनसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन *४५ *
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चित्त और संभूत ___ तेरहवें अध्ययन में चित्त और संभूत के पारस्परिक सम्बन्ध और विसम्बन्ध का वर्णन है। इसलिए इस अध्ययन का नाम नियुक्तिकार भद्रबाहु ने 'चित्रसंभूतीय' लिखा है। ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति से अध्ययन का प्रारम्भ होता है। व्याख्या-साहित्य में सम्पूर्ण कथा विस्तार के साथ दी गई है। चित्र और संभूत पूर्वभव में भाई थे। चित्र का जीव पुरिमताल नगर में सेठ का पुत्र हुआ और मुनि बना। संभूत का जीव ब्रह्म राजा का पुत्र ब्रह्मदत्त बना। चित्र का जीव जो मुनि हो गया था, ब्रह्मदत्त को संसार की असारता बताकर श्रामण्यधर्म स्वीकार करने के लिए प्रेरणा देता है पर ब्रह्मदत्त भोगों में अत्यन्त आसक्त था। अतः उसे उपदेश प्रिय नहीं लगा। पाँचवीं, छठी और सातवीं गाथा में उनके पूर्व-जन्मों का उल्लेख हुआ है। आचार्य नेमिचन्द्र ने सुखबोधावृत्ति में उनके पूर्व के पाँच भवों का विस्तार से वर्णन किया है।०४१
बौद्ध जातक साहित्य में भी यह कथा प्रकारान्तर से मिलती है। तथागत बुद्ध ने जन्म-जन्मान्तरों तक परस्पर मैत्रीभाव रहता है, यह बताने के लिए यह कथा कही थी। उज्जयिनी के बाहर चाण्डाल ग्राम था। बोधिसत्व ने भी वहाँ जन्म ग्रहण किया था और दूसरे एक प्राणी ने भी वहाँ जन्म लिया था। उनमें से एक का नाम चित्त और दूसरे का नाम संभूत था। वहाँ पर उनके जीवन के सम्बन्ध में चिन्तन है। उनके तीन पूर्वभवों का भी उल्लेख है जो इस प्रकार है
(१) नरेञ्जरा सरिता के तट पर हरिणी की कोख से उत्पन्न होना। (२) नर्मदा नदी के किनारे बाज के रूप में उत्पन्न होना।
(३) चित्त का जीव कौशाम्बी में पुरोहित का पुत्र और संभूत का जीव पांचाल राजा के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ।४२
दोनों भाई परस्पर मिलते हैं। चित्त ने संभूत को उपदेश दिया किन्तु संभूत का मन भोगों से मुड़ा नहीं। अतः चित्त ने उसके सिर पर धूल फेंकी और वहाँ से हिमालय की ओर प्रस्थित हो गया। राजा संभूत को वैराग्य हुआ। वह भी उसके पीछे-पीछे हिमालय की ओर चला। चित्त ने उसे योग-साधना की विधि बताई। दोनों ही योग की साधना कर ब्रह्म देवलोक में उत्पन्न हुए।
उत्तराध्ययन के प्रस्तुत अध्ययन की गाथाएँ चित्त-संभूत जातक के अन्दर प्रायः मिलती-जुलती हैं। उत्तराध्ययन की कथा विस्तृत है। उसमें अनेक अवान्तर कथाएँ भी हैं। वे सारी कथाएँ ब्रह्मदत्त से सम्बन्धित हैं। जैन दृष्टि से
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