________________
उत्तराध्ययनसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * ४३ *
भिक्षु 'तपोदा' नदी में स्नान कर रहे थे। राजा श्रेणिय बिम्बिसार वहाँ स्नान के लिए पहुंचे। भिक्षुओं को स्नान करते देखकर वे एक ओर रहकर प्रतीक्षा करते रहे। रात्रि होने पर भी भिक्षु स्नान करते रहे। भिक्षुओं के जाने के बाद श्रेणिय बिम्बिसार ने स्नान किया। नगर के द्वार बन्द हो चुके थे। अतः राजा को वह रात बाहर ही बितानी पड़ी। प्रातः गन्ध-विलेपन कर राजा बुद्ध के पास पहुँचा। तथागत ने पूछा- “आज इतने शीघ्र गन्ध-विलेपन कैसे हुआ?' राजा ने सारी बात कही। बुद्ध ने राजा को प्रसन्न कर रवाना किया। तथागत बुद्ध ने भिक्षुओं को बुलाकर कहा- "तुम राजा के देखने के पश्चात् भी स्नान करते रहे, यह ठीक नहीं किया।" उन्होंने नियम बनाया-"जो भिक्षु पन्द्रह दिन से पूर्व स्नान करेगा, उसे 'पाचित्तिय' दोष लगेगा।'' गर्मी के दिनों में पहनने तथा शयन करने के वस्त्र पसीने से गन्दे होने लगे। तब बुद्ध ने कहा-'गर्मी के दिनों में पन्द्रह दिन के अन्दर भी स्नान किया जा सकता है।'' रुग्णता तथा वर्षा-आँधी के समय में भी स्नान करने की छूट दी गई।२८ भगवान महावीर ने साधुओं के लिए प्रत्येक परिस्थिति में स्नान करने का स्पष्ट निषेध किया। स्नान के सम्बन्ध में कोई अपवाद नहीं रखा। उत्तराध्ययन,१२९ आचारचूला,१३० सूत्रकृतांग३१ आदि में श्रमणों के लिए स्नान करने का वर्जन है। श्रमण भगवान महावीर के समय कितने ही चिन्तक प्रातः स्नान करने से ही मोक्ष मानते थे।१३२ भगवान ने स्पष्ट शब्दों में उसका विरोध करते हुए कहा- “स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति नहीं है।१३३ जो जल-स्पर्श से ही मुक्ति मानते हैं, वे मिथ्यात्वी हैं। यदि जल-स्नान से कर्ममल नष्ट होता है तो पुण्य-फल भी नष्ट होगा, अतः यह धारणा भ्रान्त है।
प्रस्तुत अध्ययन में हिंसात्मक यज्ञ की निरर्थकता भी सिद्ध की है। यज्ञ वैदिक संस्कृति की प्रमुख मान्यता रही है। वैदिक दृष्टि से यज्ञ की उत्पत्ति का मूल विश्व का आधार है। पापों के नाश के लिए, शत्रुओं के संहार के लिए, विपत्तियों के निवारण के लिए, राक्षसों के विध्वंस के लिए, व्याधियों के परिहार के लिए यज्ञ आवश्यक है। यज्ञ से सुख, समृद्धि और अमरत्व प्राप्त होता है। ऋग्वेद में कहा है-यज्ञ इस भुवन की उत्पत्ति करने वाले संसार की नाभि है। देव तथा ऋषिगण यज्ञ से ही उत्पन्न हुए हैं। यज्ञ से ही ग्राम, अरण्य और पशुओं की सृष्टि हुई है। यज्ञ ही देवों का प्रमुख एवं प्रथम धर्म है।३० जैन और बौद्ध परम्परा ने यज्ञ का विरोध किया। उत्तराध्ययन के नवमें, बारहवें, चौदहवें और पच्चीसवें अध्ययनों में यज्ञ का विरोध इसलिए किया है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org