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उत्तराध्ययनसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * ३९ * -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-..-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.कथानकों को यहाँ पर नहीं दिया है। यहाँ हम नवमें अध्ययन की कुछ गाथाओं की तुलना जातक, धम्मपद, अंगुत्तरनिकाय, दिव्यावदान और महाभारत के पद्यों के साथ कर रहे हैं। उदाहरणस्वरूप देखिए
"सुहं वसामो जीवामो, जेसिं मो नत्थि किंचणं।
मिहिलाए डज्झमाणीए, न मे डज्झइ किंचणं॥" -उत्तराध्ययन ९/१४ तुलना कीजिए
"सुसुखं बत जीवाम ये, सं नो नत्थि किंचनं। मिथिलाय डव्हमानाय, न मे किंचि अडव्हथ॥"
-जातक ५३९, श्लोक १२५; जातक ५२९, श्लोक १६; धम्मपद १५ "सुसुखं बत जीवामि, यस्य मे नास्ति किंचन्। मिथिलायां प्रदीप्तायां, न मे दह्यति किंचन॥" -मोक्षधर्मपर्व २७६/२ "जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुञ्जए जिणे।
एगं जिणेज अप्पाणं, एस से परमो जओ॥" -उत्तराध्ययन ९/३४ तुलना कीजिए
“यो सहस्सं सहस्सेन, संगामे मानुसे जिने। एकं च जेय्यमत्तानं, स वे संगामजुत्तमो॥"
-धम्मपद ८/४ “जो सहस्सं सहस्साणं, मासे मासे गवं दए।
तस्सावि संजमो सेओ, अदिन्तस्स वि किंचणं॥" -उत्तराध्ययन ९/४० तुलना कीजिए
"मासे मासे सहस्सेन, यो यजेथ सतं समं। एकं च भावितत्तानं, मुहत्तमपि पूजये॥ सा येव पूजना सेय्यो, यं चे वस्ससतं हुतं। यो च वस्ससतं जन्तु, अग्गिं परिचरे बने। एकं च भावितत्तानं, मुहत्तमपि पूजये। सा येव पूजना सेय्यो, यं चे वस्ससतं हुतं॥" -धम्मपद ८/७-९ "यो ददाति सहस्राणि, गवामश्वशतानि च। अभयं सर्वभूतेभ्यः, सदा तमभिवर्तते॥" -शान्तिपर्व २९८/५
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