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नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * ३५५ *
में वज्र स्वामी के ११४ एवं अनुयोग प्रवर्तक प्रसिद्ध वाचनाकार आचार्य स्कन्दिल के युगप्रधानकाल के १४ वर्ष मिला देने से आर्य स्कन्दिल का समय वीर निर्वाण ८२७ से ८४० तक का प्रमाणित किया गया है।२१७ आचार्य हिमवान् के विशिष्ट गुण __ आचार्य स्कन्दिल के पश्चात् हिमालय की भाँति विस्तृत क्षेत्र में विचरण करने वाले या महान् विक्रमशाली अनन्त धैर्ययुक्त और पराक्रमी, भाव की अपेक्षा से अनन्त स्वाध्याय के धारक आचार्य श्री स्कन्दिल के शिष्य आचार्य हिमवन्त को वन्दन करता हूँ। आचार्य हिमवान् महामना, प्रतिभाशाली, धर्मनायक एवं प्रवचन-प्रभावक थे। ये अपरिमित धैर्य और पराक्रम से कर्मशत्रुओं का नाश कर रहे थे। आचार्य हिमवान् को हिमवान् पर्वत से उपमित करने का अभिप्राय यह भी है कि वे हिमालय की भाँति अपनी मर्यादा, प्रतिज्ञा और संयम में अचल एवं सुदृढ़ थे।२१८ आचार्य नागार्जुन का व्यक्तित्त्व और कर्तृत्व
इसके पश्चात् धृति-सम्पन्न, महापराक्रमी, स्वाध्यायी, उपसर्गादि प्रतिकूलताओं को सहने में सक्षम, हिमालयवत् अकम्प आचार्य नागार्जुन हुए। वे वाचनाचार्य हिमवन्त (हिमवान्) के शिष्य थे। आचार्य देववाचक ने उनका गुणानुवाद करते हुए कहा है-आचार्य नागार्जुन कालिकसूत्र सम्बन्धी अनुयोग के तथा उत्पाद आदि पूर्वशास्त्रों के धारक थे। वे हिमवान् पर्वत के समान क्षमावान् (क्षमाधर) श्रमण थे। वे कोमल, शान्ति, मार्दव, आर्जव, संतोष आदि गुणों से सम्पन्न होने से लोकप्रिय थे तथा वय-पर्याय एवं दीक्षा-पर्याय के क्रम से वाचकपद को प्राप्त हुए। इसी प्रकार वे ओघश्रुत यानी उत्सर्ग विधि का समाचरण करने वाले (उत्सर्ग-अपवादमार्ग के पूर्ण वेत्ता थे। वाचनाचार्य के (अध्ययन-कला में निपुण लब्धवर्ण, बुद्धिशाली प्रज्ञा स्कन्ध एवं शान्ति सरोवर) गुणों से युक्त थे।२१९
(माथुरी) स्कन्दिली वाचना के समय के आसपास एक आगम-वाचना वल्लभी में हुई थी आचार्य नागार्जुन की अध्यक्षता में। इसे वल्लभी वाचना या नागार्जुनीय वाचना कहा जाता है। यद्यपि वल्लभी और मथुरा दोनों जगह संघों का सम्मेलन हुआ था। स्मृति के आधार पर सूत्रसंकलन होने के कारण . वाचनादि (पाठभेद) रह जाना सम्भव है।२२०
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