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३४८ मूलसूत्र : एक परिशीलन
" वत्स ! इक्षुवाटिका में आर्य तोसलिपुत्र विराजमान हैं, वे दृष्टिवाद के ज्ञाता हैं। तुम उनके पास जाकर दत्तचित्त होकर अध्ययन करो। "
माँ का आशीर्वाद लेकर आर्यरक्षित दूसरे दिन प्रातःकाल ही इक्षुवाटिका की ओर चल पड़ा। मार्ग में उन्हें अपने पिता के मित्र वृद्ध ब्राह्मण नौ पूर्ण और आधा इक्षु लिए हुए मिला । आर्यरक्षित को उसने आशीर्वाद दिया। आर्यरक्षित ने इक्षुदण्ड देखकर अनुमान लगाया कि मैं सार्ध नौ पूर्वों का अध्ययन कर सकूँगा । २००
इक्षुवाटिका में पहुँचकर ढड्ढर नामक श्रावक को आचार्य को वन्दन करते देख उसी विधि से आर्यरक्षित ने आचार्य तोषलिपुत्र को वन्दन किया और अपने आने का प्रयोजन बताया। आचार्य ने कहा - "दृष्टिवाद के अध्ययन के लिए तुम्हें श्रमण बनना आवश्यक है।" आर्यरक्षित ने सहर्ष स्वीकृति दे दी। अतः आचार्य तोषलिपुत्र ने वीर निर्वाण सं. ५४४ (विक्रम सं. ७४) में आर्यरक्षित को श्रमण-दीक्षा दी और वहाँ से अन्यत्र विहार कर दिया। आचार्य तोषलिपुत्र ने अपना सारा ज्ञान विनीत आर्यरक्षित को सहर्ष प्रदान कर दिया | २०१ विशेष अध्ययन के लिए उन्होंने आर्यरक्षित को आर्य वज्र स्वामी के पास जाने का निर्देश दिया । २०२ आर्यरक्षित ने वहाँ से प्रस्थान किया और रास्ते में अवन्तीनगरी में विराजित वज्र स्वामी के विद्यागुरु आचार्य भद्रगुप्त के दर्शनार्थ पहुँचे। उनसे जब वज्र स्वामी के पास अध्ययनार्थ जाने का जिक्र किया तो आचार्य भद्रगुप्त ने कहा - "तुम्हारी भावना प्रशंसनीय है। पर इस समय मेरा अन्तिम समय निकट होने से तुम मुझे संलेखना - संथारापूर्वक समाधिमरण में सहयोग दो ।" आर्यरक्षित ने प्रसन्न मन से दत्तचित्त होकर उनकी सेवा की, जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने आशीर्वाद दिया। इस प्रकार आचार्य भद्रगुप्त के स्वर्गवास होने पर आर्यरक्षित ने विहार किया और आचार्य भद्रगुप्त के परामर्शानुसार अपने आहार, शमनादि की व्यवस्था अलग की ।
आर्य वज्र स्वामी को आर्यरक्षित के अध्ययनार्थ आने का पता चल गया । अतः आर्यरक्षित के पहुँचने पर उन्होंने उसे दृष्टिवाद पढ़ाना प्रारम्भ किया। आर्य रक्षित की बुद्धि तीक्ष्ण होने से अध्ययन द्रुतगति से चल रहा था। इसी बीच उनके संसार - पक्षीय माता-पिता का सन्देश लेकर उनका छोटा भाई फल्गुरक्षित आया और कहा - "माता-पिता आपके दर्शन के लिए तरस रहे हैं, अतः शीघ्र ही दर्शन देने पधारो ।" आर्यरक्षित ने अनासक्तभाव से सुना और फल्गुरक्षित से कहा--" भाई ! यह सब मोह का नाटक है। जिसके कारण सारा संसार
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