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नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * ३४७*
अल्पता का ज्ञान हुआ। साथ ही ज्ञान-बल से यह भी जाना कि भविष्य में भयंकर दुष्काल पड़ने वाला है। अतः उन्होंने अपने शिष्य वज्रसेन को आदेश दिया कि वे ५०० शिष्यों के साथ सोपारक देश की ओर जायें और सुभिक्ष न हो जाये तब तक उसी क्षेत्र में विचरण करें। उन्होंने उसी प्रकार किया। आर्य वज्र स्वामी जिस क्षेत्र में विचर रहे थे, वहाँ अनशनपूर्वक उन सबने समाधिमरण प्राप्त किया। इस प्रकार वज्र स्वामी ने वीर निर्वाण सं. ५८४ में स्वर्गारोहण किया। वज्र स्वामी ८ वर्ष तक गृहस्थाश्रम में रहे। ८० वर्ष तक संयम का पालन किया। ३६ वर्ष तक युगप्रधान आचार्य के रूप में रहे। इस प्रकार उनकी कुल आयु ८८ वर्ष की हुई। वज्र स्वामी के स्वर्गवास के पश्चात् दश पूर्व और चतुर्थ अर्ध-नाराच-संहनन का विच्छेद हो गया।९७ आर्य वज्रस्वामी के नाम पर वाज्रीशाख का प्रादुर्भाव हुआ। अनुयोगरक्षक आर्यरक्षित : बीसवें पट्टधर
युगप्रधान आचार्यों की परम्परा में आर्यरक्षित का विशिष्ट स्थान है। मध्य प्रदेश के अन्तर्गत दशपुर (वर्तमान में मन्दसौर) नगर में वीर निर्वाण सं. ५२२ (विक्रम सं. ५२) में उनका जन्म हुआ। उनके पिता का नाम सोमदेव और माता का नाम रुद्रसोमा था, जो जैन श्राविका, उदार हृदया और अतिमधुरभाषिणी थी। पिता सोमदेव राजपुरोहित और कलाविद् भी थे। आर्यरक्षित के छोटे भाई का नाम फल्गुरक्षित था। दोनों ही पुत्र मेधावी थे।१९८ उन्होंने वेदों का सांगोपांग अध्ययन किया था। किन्तु आर्यरक्षित का जिज्ञासु मन विशेष अध्ययन करने के लिए ललक रहा था। अतः पिता की अनुमति लेकर अध्ययन हेतु पाटलिपुत्र पहुँचे। अल्प समय में ही अध्ययन करके दशपुर लौटे। राजपुरोहित होने से दशपुर-नरेश ने तथा नागरिकों ने आर्यरक्षित का अभिवादन एवं विशिष्ट सम्मान किया। सभी के द्वारा सम्मान प्राप्त कर आर्यरक्षित माता रुद्रसोमा के पास पहुँचा। किन्तु माता ने सामायिक में होने से उसे बधाई और आशीर्वाद नहीं दिया। माँ का आशीर्वाद न मिलने से आर्यरक्षित के चेहरे पर उदासी छा गई।१९९ उन्होंने माता से इसका कारण पूछा तो उसने कहा-"वत्स ! तूने वर्षों तक लौकिक शास्त्रों का अध्ययन किया है, पर जिस अध्ययन से आत्मबोध न हो, वह अध्ययन जीवन के लिए सार्थक नहीं है। मैं चाहती हूँ कि तू लोकोत्तर शास्त्र-'दृष्टिवाद' का अध्ययन कर।" आर्यरक्षित ने माँ से पूछा-“माताजी ! दृष्टिवाद का अध्ययन कराने वाला कौन प्राध्यापक है?' रुद्रसोमा बोली
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