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नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन ३३५
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अतः आर्य सुहस्ती ने उस रंक से कहा - "यदि तुम श्रमणधर्म स्वीकार करो तो हम तुम्हें अपने नियमानुसार आहार दे सकते हैं, गृहस्थ को नहीं।” रंक ने सोचा- 'भूख से छटपटाकर मरने की अपेक्षा तो श्रमणधर्म स्वीकार करना अच्छा है।' १७१ आचार्यश्री ने उसे श्रमणधर्म का स्वरूप, माहात्म्य और फल के विषय में समझाया। इस पर श्रमणधर्म - पालन के लिए उद्यत होने पर उसे आचार्य ने दीक्षा प्रदान की ।
दीक्षा ग्रहण करने के बाद नवदीक्षित मुनि को उन्होंने भरपेट सरस आहार कराया । किन्तु कई दिनों का भूखा होने से उसने अधिक मात्रा में सरस भोजन कर लिया। १७२ फलतः श्वास नलिका में श्वास - वायु का संचार रुक जाने से अत्यधिक पीड़ा हुई । आचार्य श्री सहित सभी साधु उसकी परिचर्या में लगे हुए थे । आचार्यश्री ने उसे प्रशस्त भावना और संयम का महत्त्व समझाया। उसका आयुष्यदीप बुझता देख सागारी संथारा करा दिया । उसी दिन प्रशस्त भावना से उस साधु ने आयुष्य पूर्ण किया और अवन्ती - नरेश अशोक के पौत्र- कुणाल के पुत्र - सम्प्रति के रूप में जन्म लिया । पूर्वकृत पुण्य एवं धर्मनिष्ठा के फलस्वरूप वह महान् साम्राज्य का अधिकारी बना ।
एक दिन राजकुमार सम्प्रति महल के गवाक्ष में बैठा हुआ था। नीचे राजपथ से आचार्य सुहस्ती को साधु-मंडली सहित जाते देखकर वह विशेष रूप से चिन्तन करने लगा कि यह आकृति पूर्व-परिचित लगती है । ऊहापोह करते-करते जातिस्मरण ज्ञान हुआ, जिससे पूर्वभव का सारा चित्र उसके स्मृति पट पर चमक उठा। वह अपने प्रासाद से नीचे उतरकर आचार्य सुहस्ती के समक्ष हाथ जोड़कर खड़ा हो गया । परम ज्ञानी आचार्य ने उपयोग लगाया तो उसका पूर्वभव उनके मस्तिष्क में चलचित्र की भाँति चमक उठा। तत्पश्चात् सम्प्रति ने गद्गद होकर कहा - " भगवन् ! आप मेरे परम उपकारी गुरु हैं। मैं आपका धर्मपुत्र हूँ। मुझे आदेश दें, जिससे मेरा जीवन मंगलमय और आपके असीम ऋण से उऋण हो सके।" आचार्य सुहस्ती ने कहा - " जिस धर्म के प्रभाव से तुम्हें यह सम्पदा प्राप्त हुई है, उस धर्म का पालन करो और उस धर्म की प्रभावना करो ।” सम्प्रति ने आर्य सुहस्ती से श्रावक व्रत अंगीकार किया और अपने सामन्तों तथा राज्य कर्मचारियों को भी जैन- संस्कार प्रदान किये। फिर उसने अपने सुभटों को श्रमण वेश पहनाकर आन्ध्र, द्रविड़ (तमिलनाडु), महाराष्ट्र आदि ( उस समय के) अनार्य प्रदेशों में प्रेषित किये, ताकि वे वहाँ के निवासियों को श्रमणों के आचार-विचार से संयम-नियमों से परिचित कर
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