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* ३१४ * मूलसूत्र : एक परिशीलन
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आचार्य परम्परानुसार कल्पसूत्र स्थविरावली कल्पसूत्र स्थविरावली को आर्य सुहस्ती की आचार्य परम्परा माना है। वह यहाँ दी जा रही है१. आर्य सुधर्मा
२. आर्य जम्बू ३. आर्य प्रभव
४. आर्य शय्यम्भव ५. आर्य यशोभद्र
६. आर्य सम्भूतविजय-भद्रबाहु ७. आर्य स्थूलभद्र ८. आर्य सुहस्ती ९. आर्य सुस्थित-सुप्रतिबुद्ध १०. आर्य इन्द्रदिन्न ११. आर्य दिन्न
१२. आर्य सिंहगिरि १३. आर्य वज्र
१४. आर्य रथ १५. आर्य पुष्यगिरि १६. आर्य फल्गुमित्र १७. आर्य धनगिरि १८. आर्य शिवभूति १९. आर्य भद्र
२०. आर्य नक्षत्र २१. आर्य दक्ष
२२. आर्य नाग २३. आर्य जेहिल
२४. आर्य विष्णु २५. आर्य कालक
२६. आर्य सम्पलितभद्र २७. आर्य वृद्ध
२८. आर्य संघपालित २९. आर्य हस्ती
३०. आर्य धर्म ३१. आर्य सिंह
३२. आर्य धर्म ३३. आर्य सांडिल्य कल्पसूत्र की स्थविरावली के अन्त में दी गई देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण की वन्दन-गाथा के आधार पर सांडिल्य के पश्चात् देवर्द्धि को ३४वाँ आचार्य माना है। परन्तु यह गाथा प्रक्षिप्त मानी गई है। कल्पसूत्र की स्थविरावली को गुरु-शिष्य परम्परा के रूप में मान्य किया गया है। अग्निवेश्यायन गोत्रीय आर्य सुधर्मा : प्रथम आचार्य ___ आचार्य परम्परा की कड़ी में सूत्रकार ने आचार्य सुधर्मा को सर्वप्रथम स्थान में अधिष्ठित रखा है। श्वेताम्बर परम्परानुसार वीर निर्वाण के बाद आचार्य परम्परा का प्रारम्भ आर्य सुधर्मा (पंचम गणधर) से होता है। गणधर-मण्डली
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