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नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * ३०९ -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.की। ५७ वर्ष की वय में इन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ और भगवान महावीर के अन्तिम वर्ष-७८ वर्ष की उम्र में राजगृह के गुणशील चैत्य में निर्वाण प्राप्त किया।१०७ आर्य अचलभ्राता : नवम गणधर __ ये कोशलाग्राम के निवासी हारीत गोत्रीय ब्राह्मण थे। आपके पिता 'वसु'
और माता ‘नन्दा' थी। ३०० छात्रों के साथ ४६ वर्ष की वय में श्रमण दीक्षा ली। १२ वर्ष तक छद्मस्थावस्था में रहे। १४ वर्ष केवली-पर्याय में विचरण कर ७२ वर्ष की आयु में मासिक अनशन के साथ राजगृह स्थित गुणशील चैत्य में निर्वाण को प्राप्त हुए।१०८
आर्य मैतार्य : दशम गणधर ___ ये वत्स-देशान्तर्गत तुंगिक-सन्निवेश के निवासी कौण्डिन्य गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम ‘दन्त' तथा माता का नाम वरुणदेवा था। उन्होंने ३०० छात्रों के साथ ३६ वर्ष की वय में दीक्षा ग्रहण की। १० वर्ष तक छद्मस्थावस्था में रहे और १६ वर्ष तक केवली अवस्था में। भगवान महावीर के निर्वाण से ४ वर्ष पूर्व ६२ वर्ष की वय में राजगृह स्थित गुणशील चैत्य में उनका निर्वाण
हुआ।०९
आर्य प्रभास : ग्यारहवें गणधर __ ये राजगृह निवासी कौण्डिन्य गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम बल और माता का नाम अतिभद्रा था। १६ वर्ष की वय में श्रमणधर्म स्वीकार किया। ८ वर्ष तक छद्मस्थावस्था में रहे और १६ वर्ष तक केवली अवस्था में। भगवान महावीर के निर्वाण के ५ वर्ष पूर्व राजगृह में मासिक अनशनपूर्वक ४० वर्ष की वय में निर्वाण को प्राप्त हुए।११० । गणधरों की गरिमा के विषय में विशेष ज्ञातव्य (१) ये ग्यारह ही विद्वान् भारत के चोटी के जाने-माने क्रियाकाण्डी विद्वान्
आचार्य थे। (२) इन सबके अन्तर्मन में आत्मा, कर्म आदि विषयों के सम्बन्ध में एक-एक
सन्देह था, जिसका रहस्योद्घाटन एवं समाधान प्राप्त होने पर ये वैदिक धर्म को छोड़कर वीतराग धर्म में दीक्षित हो गए।
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