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________________ * ३०८ * मूलसूत्र : एक परिशीलन माता एक ही थी-विजयादेवी। किन्तु मण्डिक के पिता का नाम धनदेव था और मौर्यपुत्र के पिता का नाम था-मौर्य। आर्य मण्डिक के जन्म के बाद धनदेव का निधन हो गया। अतः (उस समय महिला के लिए पुनर्विवाह जायज माने जाने से) धनदेव के मौसेरे भाई मौर्य के साथ विजयादेवी ने विधवा विवाह कर लिया। उसके पश्चात् मौर्य से जो पुत्र हुआ, उसका नाम मौर्यपुत्र रखा गया। ___ मुनि श्री रत्नप्रभविजय जी ने भी लिखा है-“माता एक और पिता दो थे। चूँकि उस समय मौर्य-सन्निवेश में विधवा-विवाह निषिद्ध नहीं था।" ___ पण्डितप्रवर दलसुख मालवणिया जी ने भी 'गणधरवाद' की प्रस्तावना में लिखा है-"माता एक और पिता दो थे।" परन्तु वस्तुतः यह एक भ्रम है, सत्य-तथ्य नहीं है। दोनों की माता का एक नाम होने से ही यह भ्रम हुआ है।०२ समवायांगसूत्र में आर्य मण्डिक की सर्वायु ८३ वर्ष की लिखी है। साथ ही यह भी लिखा है कि वे ३० वर्ष तक श्रमण-पर्याय का पालन कर सिद्ध-बुद्धमुक्त हुए। इस पर से यह स्पष्ट है कि दीक्षा लेने के समय मण्डिक की आयु ५३ वर्ष की थी।१०३ इसी समवायांगसूत्र में मौर्यपुत्र के सम्बन्ध में लिखा है-उन्होंने ६५ वर्ष की आयु में दीक्षा ली थी। दीक्षा लेने की समवायांग की बात अन्य ग्रन्थकारों ने भी स्वीकार की है।०४ मुनि रत्नप्रभविजय जी ने भी इसी तथ्य को माना है।०५ सारांश यह है कि ११ ही गणधरों ने जब एक ही दिन दीक्षा ग्रहण की थी, तब ऐसी स्थिति में यह कैसे सम्भव है कि बड़े भ्राता ५३ वर्ष के हों और लघु भ्राता ६५ वर्ष के ? एक ही दिन दीक्षा लेते समय बड़े भाई से छोटा भाई उम्र में बड़ा कैसे हो सकता है? इस पर से यह स्पष्ट है कि मण्डिक और मौर्यपुत्र ये दोनों सहोदर भाई नहीं थे। दोनों की माताएँ पृथक्-पृथक् थीं। नाम भले ही एक रहा हो, पर वे एक नहीं थीं। अतः विजयादेवी ने पुनर्विवाह नहीं किया था। उनकी उम्र की ओर दृष्टि न जाने से ही (भ्रमवश) आचार्य हेमचन्द्र-जैसे महाप्रतिभा के धनी ने इन दोनों गणधरों को सहोदर माना और आगे-'लोकाचारो हि न हिये' लिखकर अपनी मान्यता का औचित्य सिद्ध करने का प्रयास किया।०६ आर्य अकम्पित : अष्टम गणधर ये मिथिला के रहने वाले गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता 'देव' और माता ‘जयन्ती' थी। इन्होंने ३०० छात्रों के साथ ४८ वर्ष की वय में दीक्षा ग्रहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002996
Book TitleMulsutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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