SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नन्दीसत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन ३०७* आर्य सुधर्मा स्वामी : पंचम गणधर ये भी कोल्लाग-सन्निवेश के निवासी अग्निवैश्यायन गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम धम्मिल और माता का नाम भद्दिला था। इनके पास ५०० छात्र अध्ययन करते थे। इन्होंने ५० वर्ष की वय में भगवान महावीर के पास श्रमण-दीक्षा स्वीकार की। ४२ वर्ष पर्यन्त छद्मस्थ अवस्था में रहे। भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात् १२ वर्ष व्यतीत होने पर आप केवली हुए और ८ वर्ष तक केवली-पर्याय में रहे। श्रमण भगवान महावीर के सभी गणधरों में सुधर्मा दीर्घजीवी थे। अतः अन्यान्य गणधरों ने अपने-अपने निर्वाण के समय अपने-अपने गण आर्य सुधर्मा स्वामी को समर्पित कर दिये थे। ___ महावीर-निर्वाण के १२ वर्ष बाद सुधर्मा स्वामी को केवलज्ञान प्राप्त हुआ और २० वर्ष के पश्चात् १०० वर्ष की अवस्था में मासिक अनशनपूर्वक राजगृह में स्थित गुणशील चैत्य में निर्वाण प्राप्त किया।९९ आर्य मण्डिक (मण्डितपुत्र) : छठे गणधर ___ आर्य मण्डिक मौर्य-सन्निवेश-निवासी वशिष्ठ गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम 'धनदेव' और माता का नाम 'विजयादेवी' था। इन्होंने ३५० छात्रों के साथ ५३ वर्ष की वय में केवलज्ञान प्राप्त किया और ८३ वर्ष की वय में गुणशील चैत्य में निर्वाण को प्राप्त किया।०० आर्य मौर्यपुत्र : सप्तम गणधर ___ ये काश्यप गोत्रीय ब्राह्मण थे। मौर्य-सन्निवेश-निवासी पिता ‘मौर्य' और माता 'विजयादेवी' के ये पुत्र थे। ३५० छात्रों के साथ ५३ वर्ष की वय में इन्होंने मुनि-दीक्षा ग्रहण की। ७९ वर्ष की वय में इन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ और भगवान महावीर स्वामी के अन्तिम वर्ष में ८३ वर्ष की उम्र में राजगृह स्थित गुणशील चैत्य में मासिक अनशनपूर्वक निर्वाण प्राप्त किया।१०१ एक स्पष्टीकरण __ भगवान महावीर के छठे गणधर मण्डिक (मण्डितपुत्र) और सातवें गणधर मौर्यपुत्र के सम्बन्ध में आचार्य जिनदासगणी महत्तर और आचार्य हेमचन्द्र ने लिखा है कि ये दोनों माता विजयादेवी के अंगजात सहोदर थे। इन दोनों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002996
Book TitleMulsutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy