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३०६ मूलसूत्र : एक परिशीलन
संक्षेप में कहा जाए तो वे जाइसंपत्रे, कुलसंपन्ने, बलसंपन्ने, विणयसंपन्ने, नाणसंपत्रे, दंसणसंपन्ने, चारित्तसंपन्ने, ओयंसी, तेयंसी, जसंसी आदि संसार के समस्त सर्वोच्च कोटि के गुणों के अक्षय भण्डार थे ।
भगवान महावीर को केवलज्ञान (सर्वज्ञता ) - प्राप्ति के पश्चात् निर्वाण -प्राप्ति तक वे उनके अनुगामी बनकर रहे। निर्वाण के पश्चात् भगवान के प्रति अनुराग का सूक्ष्म सूत्र भी टूट गया। वे स्वयं वीतरागी सर्वज्ञ एवं भगवत्स्वरूप जीवन्मुक्त बनकर १२ वर्षों तक भारतवर्ष में विचरण करते रहे। परन्तु उनका विचरण कहाँ-कहाँ, किस-किस प्रदेश में हुआ ? क्या-क्या घटना-प्रसंग उनके जीवन - विकास से जुड़े होंगे। उनका किंचित् मात्र भी उल्लेख किसी शास्त्र में उपलब्ध नहीं होता । सच है, वे स्वयं प्रसिद्धि एवं प्रशंसा से स्वयं कोसों दूर रहे, जीवन को उज्ज्वल, समुज्ज्वल बनाकर अन्त में आठों ही कर्मों से, जन्म-मरण से तथा समस्त वैषयिक सुख-दुःखों से सर्वथा रहित सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गए। वास्तव में उनका नन्दीसूत्र में बहुमानपूर्वक स्मरण करना उचित ही है । ९५ अग्निभूति गौतम : द्वितीय गणधर
अग्निभूति इन्द्रभूति गौतम के मझले भाई थे । ४६ वर्ष की आयु में उन्होंने श्रमण भगवान महावीर के पास दीक्षा अंगीकार की । १२ वर्ष तक छद्मस्थावस्था में तप - जप कर कैवल्यश्री को प्राप्त हुए । १६ वर्ष तक केवली अवस्था में विचरण कर भगवान महावीर के निर्वाण से दो वर्ष पूर्व राजगृह के गुणशील चैत्य में मासिक अनशन कर ७४ वर्ष की आयु में निर्वाण को प्राप्त हुए । १९६ वायुभूति गौतम : तृतीय गणधर
इन्द्रभूति गौतम के लघु भ्राता थे । ४२ वर्ष की उम्र में गृहवास को त्यागकर इन्होंने श्रमणधर्म अंगीकार किया था । ये १० वर्ष छद्मस्थावस्था में रहे। १८ वर्ष केवली अवस्था में रहे । ७० वर्ष की वय में राजगृह के गुणशील नामक चैत्य में मासिक अनशन के साथ निर्वाण प्राप्त किया । ९७
आर्य व्यक्त स्वामी : चतुर्थ गणधर
ये कल्लाग सन्निवेश के निवासी भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण थे । आपके पिता का नाम धनमित्र और माता का नाम वारुणी था । ५० वर्ष की वय में आपने ५०० शिष्यों के साथ श्रमणधर्म स्वीकार किया । ये १२ वर्ष तक छद्मस्थ रहे और १८ वर्ष तक केवली - पर्याय में विचरण कर ८० वर्ष की अवस्था में गुणशील चैत्य में मासिक अनशन के साथ निर्वाण को प्राप्त हुए । १८
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