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* ३०२ * मूलसूत्र : एक परिशीलन
गणधर इन्द्रभूति गौतम का गरिमापूर्ण व्यक्तित्त्व ___ इन्द्रभूति गौतम भगवान महावीर के प्रधान पट्टशिष्य थे। उनकी जन्म-भूमि मगध देश की राजधानी राजगृह के निकट ‘गोबरग्राम' थी; जो आज पण्डितपुर के नाम से प्रसिद्ध है, आज वह नालन्दा का ही एक विभाग माना जाता है। इन्द्रभूति के पिता का नाम 'वसुभूति' और माता का नाम 'पृथ्वी' था। उनका गोत्र ‘गौतम' था।८३ ‘गौतम' का व्युत्पत्तिजन्य अर्थ करते हुए जैनाचार्यों ने लिखा है-बुद्धियों (चतुर्विध बुद्धियों) के द्वारा जिसका तम (अज्ञानान्धकार) ध्वस्त = नष्ट हो गया है, वह गौतम।८४ यों तो 'गौतम' शब्द कुल और वंश का भी वाचक रहा है। स्थानांगसूत्र में सात प्रकार के 'गौतम' बताये गए हैं।८५ वैदिक वाङ्मय में गौतम नाम कुल से भी सम्बद्ध रहा है और ऋषियों से भी। ऋग्वेद में गौतम के नाम से अनेक सक्त मिलते हैं। वैसे गौतम नाम के अनेक ऋषि भी हो चुके हैं। अरुण उद्दालक, आरुणि आदि ऋषियों का भी पैतृक नाम 'गौतम' था।८६ यह कहना कठिन है कि इन्द्रभूति गौतम का वास्तविक गोत्र क्या था? वे किस ऋषि के वंश से सम्बद्ध थे? किन्तु इतना तो स्पष्ट है कि गौतम गोत्र के महान् गौरव के अनुरूप ही उनका व्यक्तित्त्व विराट् एवं प्रभावशाली था।
उनका बाह्य और आन्तरिक दोनों प्रकार का व्यक्तित्त्व विराट और उदार था। उनके शरीर की ऊँचाई ७ हाथ थी; आकृति समचतुरस्र-संस्थान से युक्त थी, उनका संहनन वज्रऋषभनाराच था। उनका वर्ण तपे तपाए हुए कुन्दन-सा या पद्मकमल-सा गौर था। उनकी भव्य और सुन्दर आकृति को देखकर मनुष्य तो क्या, देव भी उनसे मोहित, प्रभावित और आकर्षित हो जाते थे। उनकी विद्वत्ता और अनेक शास्त्रों में विजयोपलब्धि, पारंगतता एवं समन्वय कार्य में सिद्धहस्तता के फलस्वरूप विद्वत् समाज ने उनको अनेक उपाधियों से अलंकृत किया था। कल्पसूत्र की सुबोधावृत्ति में ऐसी ३२ उपाधियों का नामोल्लेख मिलता है।८७
भगवान महावीर को वैशाख सुदी १० के दिन केवलज्ञान, केवलदर्शन (सर्वज्ञत्व) की प्राप्ति हुई थी। उस समय मध्यम अपापा (पावापुरी) नगरी में सोमिल ब्राह्मण महायज्ञ कर रहा था। उस यज्ञानुष्ठान की सफलता के हेतु उन्नत विशाल कुलोत्पन्न वेदविज्ञ इन्द्रभूति गौतम आदि ११ विद्वान् वहाँ आये हुए थे। उनके साथ ४,४०० शिष्यों का परिवार था। उन सबका गर्व आसमान को छू
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