________________
* २९६ * मूलसूत्र : एक परिशीलन
तथा गृहस्थ श्रावक-श्राविकाओं की जीवन-साधना का महत्त्वपूर्ण वर्णन उपलब्ध होता है।
उपांगसूत्रों में मुख्यतया औपपातिक, राजप्रश्नीय, निरयावलिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका आदि में भगवान महावीर के जीवन के विभिन्न प्रसंग, संवाद, प्रश्नोत्तर तथा उनके चरणों में दीक्षित होने वाले साधु-साध्वियों का तथा उस युग के तापसों एवं उनके विभिन्न नियम-परम्पराओं एवं तपों की सुन्दर जानकारी प्राप्त होती है। उत्तराध्ययनसूत्र तो भगवान महावीर के महत्त्वपूर्ण अपृष्ट-व्याकरणारूप उपदेशों का महासागर है। इसमें ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप की साधना के सन्दर्भ में विविध पहलुओं से प्रदत्त भगवान महावीर के उपदेश हैं। तथैव ऐतिहासिक केशी गौतमीय संवाद, अप्रमाद साधना, इन्द्रिय मनोनिग्रह साधना एवं सम्यक्त्व पराक्रम नाम से विविध आध्यात्मिक साधनाओं के सम्बन्ध में एक से एक बढ़कर उत्कृष्ट अध्ययन हैं।७३ परवर्ती साहित्य-ग्रन्थों में भगवान महावीर का जीवन
भगवान महावीर की जीवन गाथा के विकास का द्वितीय चरण नियुक्तिसाहित्य में मिलता है। सर्वप्रथम आवश्यकनियुक्ति में भगवान महावीर के २७ पूर्वभवों का वर्णन, उपसर्गों की विविध घटनाएँ, गणधरों की शंकाएँ और उनका भगवान द्वारा समाधान आदि उल्लेख मिलते हैं, जिनका उल्लेख आचारांग एवं कल्पसूत्र में भी नहीं मिलता।
भगवान महावीर और ग्यारह गणधरों की पारस्परिक विचार-चर्चा के जो बीज नियुक्ति में थे, वे ही भाष्य में विराट रूप में उपलब्ध होते हैं। आवश्यकचूर्णि में पूर्वोक्त व्याख्या-ग्रन्थों की अपेक्षा अधिक विस्तार से वर्णन किया गया है। शैली का परिष्कार तथा साहित्यिक छटा भी निखरी है।
भगवान महावीर स्वामी के जीवन-वृत्त के विकास का तृतीय चरण प्राकृत काव्य-साहित्य में देखा जा सकता है जिसमें चउप्पन महापुरिसचरियं, महावीरचरियं (पद्यबद्ध), महावीरचरियं (गद्य-पद्यमय), तिल्लोयपण्णत्ति आदि ग्रन्थ प्रमुख हैं।
संस्कृत-साहित्य में सर्वप्रथम त्रिशष्टिशलाका पुरुष चरित्र में भगवान महावीर के जीवन के सभी मुख्य प्रसंगों का सांगोपांग वर्णन है। यह ग्रन्थ जैन परम्परा का महाभारत कहा जा सकता है। इसके अतिरिक्त लघु त्रिशष्टिशलाका पुरुष चरित्र, त्रिशष्टि स्मृतिशास्त्र, महापुराण चरित्र, पुराणसार-संग्रह,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org