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नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * २८३ *
तप का वर्णन आत्मोत्थान के लिए है, दशवैकालिक में सम्यक् चारित्र और तप मोक्ष-प्राप्ति के मूल उपाय के रूप में वर्णित है, अनुयोगद्वार में तत्त्वज्ञान का तथा नन्दीसूत्र में सम्यक् ज्ञान का सांगोपांग वर्णन होने से ये मोक्ष के मूल उपाय हैं। इन कारणों से इन्हें मूलसूत्र कहा गया है। नन्दीसूत्र एकान्त अव्याबाध-सुख प्राप्तिकारक पंचविध सम्यक् ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है। इस अपेक्षा से नन्दीसूत्र की गणना मूलसूत्रों में की गई है। जहाँ सम्यक् ज्ञान का सद्भाव है, वहाँ निश्चय ही सम्यक् दर्शन होता है। सम्यक् दर्शन के अभाव में ज्ञान सम्यक् ज्ञान नहीं, किन्तु अज्ञान (मिथ्या ज्ञान) हो जाता है। सम्यक् ज्ञान के बिना चारित्र भी सम्यक् नहीं हो सकता। चारित्र और तप की सम्यकता के लिए सम्यक् ज्ञान होना अनिवार्य है क्योंकि इन दोनों की आराधना-साधना सम्यक् ज्ञानपूर्वक ही होती है।
दूसरी बात यह है कि चारित्र और तप, ये दोनों इहभविक ही हैं, किन्तु ज्ञान इहभविक भी है, परभविक भी है और तदुभयभविक भी। फिर ज्ञान आदि अनन्त है। साधक अवस्था से लेकर सिद्ध अवस्था तक ज्ञान का सद्भाव रहता है। साधक अवस्था में ज्ञान मोक्ष का मार्ग है। जबकि सिद्ध अवस्था में ज्ञान आत्मा के क्षायिक भाव से प्रगट हुआ गुण है वह स्व-पर-प्रकाशक भी है। निश्चय दृष्टि से ज्ञान परिपक्वावस्था में चारित्र बन जाता है। वह आत्मा का मुख्य निजी गुण है। वह आत्मा के साथ हर समय रहता है। आत्म-शुद्धि के जितने भी साधन हैं, उनका मूल कारण ज्ञान है। नन्दीसूत्र में मुख्य रूप से आत्मा के मूलभूत गुण-ज्ञान का वर्णन है। अतएव नन्दीसूत्र को मूल संज्ञा से अभिहित किया गया है।५३ नन्दीसूत्र को चूलिका क्यों कहा गया ? ___ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय नन्दीसूत्र और अनुयोगद्वारसूत्र को मूलसूत्र न मानकर चूलिकासूत्र मानता है। चूलिका शब्द का प्रयोग उन अध्ययनों या ग्रन्थों (शास्त्रों) के लिए होता है, जिनमें अवशिष्ट या परिशिष्ट विषयों का वर्णन अथवा वर्णित विषयों का स्पष्टीकरण किया गया है। दशवैकालिक और महानिशीथ के अन्त में इस प्रकार की चूलिकाएँ-चूलाएँ या चूड़ाएँ उपलब्ध हैं। इन चूलिकाओं में मूलशास्त्र के प्रयोजन अथवा विषय को मद्देनजर रखते हुए, कुछ ऐसी आवश्यक बातों पर प्रकाश डाला जाता है, जिनका समावेश आचार्य मूलशास्त्र में न कर सके। नन्दीसूत्र और अनुयोगद्वार भी इसी प्रकार की बड़ी
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