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नन्दीसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * २७९ *
हैं। अतः नन्दी आदि आगम एकान्त अव्याबाध सुख (परमानन्द) रूप मोक्ष के कारण एवं साधन हैं। ये भय, मोह, कषाय तथा रागादि विकारों पर विजय के अमोघ साधन हैं। बशर्ते कि उपयोगपूर्वक तन्मय होकर इनका स्वाध्याय किया जाये।५ नन्दी शब्द स्त्रीलिंगी है या पुल्लिंगी ?
नन्दीसूत्र को आत्मा की भावसमृद्धि चतुष्टय की जननी कहा जा सकता है; साथ ही असीम आनन्द का कारण भी नन्दीसूत्र है। इन दोनों युक्तियों से नन्दीसूत्र के विषय में कतिपय जिज्ञासुओं के मन में प्रश्न उठता है कि 'नन्दी' शब्द पुल्लिंग है या स्त्रीलिंग? इस विषय में आचार्यों के दोनों ही मत मिलते हैं। उनके मतानुसार भावनन्दी के अतिरिक्त नामनन्दिः, स्थापनानन्दिः और द्रव्यनन्दिः शब्द में ह्रस्व इकार सहित पुल्लिंग में प्रयोग किया जाये। इसी प्रकार हर्ष, प्रमोद, कन्दर्प या लौकिक आनन्द (मौज-शौक) के अर्थ में प्रयुक्त नन्दि शब्द को ह्रस्व-इकारान्त पुल्लिंग समझा जाए। और जहाँ दीर्घ-इकारान्त नन्दी शब्द आत्मिक भाव चतुष्टय समृद्धि का वाचक हो, या भावनन्दी-निक्षेपार्थक हो, अथवा समासयुक्त दीर्घ ईकारान्त पद हो, वहाँ वह स्त्रीलिंग समझा जाये तो कोई दोषापत्ति नहीं है। नन्दि या नन्दी दोनों का अर्थ और भाव एक ही है। आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित मलयगिरि रचित वृत्ति में 'नन्दीसूत्रम्' नन्दीवृत्तिः नन्दीनिक्षेपाः इस प्रकार नन्दी शब्द का प्रयोग दीर्घ ईकारान्त स्त्रीलिंग में हुआ है। इसी परम्परा को स्थिर रखने के लिए बाद के आचार्यों ने भी स्त्रीलिंगी 'नन्दी' शब्द का ही प्रयोग किया है। ६ संस्करण की दृष्टि से नन्दीसूत्र के तीन रूप
नन्दीसूत्र का विविध प्रयोजनों के लिए तीन प्रकार के रूप का उल्लेख भी मिलता है-प्रथम रूप है-देववाचक-विरचित नन्दीसूत्र, द्वितीय रूप हैलघुनन्दी, जिसका अपर नाम अनुज्ञानन्दी भी है और तीसरा रूप है -योगनन्दी। __लघुनन्दी का यह अर्थ नहीं है कि यह नन्दीसूत्र का संक्षिप्तीकरण है, अपितु सामान्यतया गुरु शिष्य को पढ़ने की, पढ़े हुए ज्ञान की आवृत्ति करके उसे स्थिर रखने की, फिर तीसरे चरण में उसे अध्यापन करने (पढ़ाने-वाचना देने) की अनुमति देता और चौथे चरण में उक्त आगम की व्याख्या (अनुयोग पद्धति से) करने की स्वीकृति देता था। इन्हीं चारों के लिए शास्त्रीय शब्द इस प्रकार प्रचलित थे-(१) उद्देश (उद्देसो) = पढ़ने की आज्ञा, (२) समुद्देश (समुद्देसो) =
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