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________________ * २७६ * मूलसूत्र : एक परिशीलन पण्णवण-आगमे वा एगट्ठा पज्जया सुत्ते।" सूत्र, सुक्त या सुप्त, ग्रन्थ, सिद्धान्त, प्रवचन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापन, आगम, जिन-वचन तथा श्रुत ये सभी सूत्र या आगम के ही पर्यायवाची एकार्थक शब्द हैं। निक्षेप पद्धति से नन्दी का विश्लेषण ____ अतः पूर्वोक्त विवेचन के आधार पर नन्दीसूत्र को आगम, सूत्र, श्रुत, ग्रन्थ, सुप्त आदि सिद्ध कर दिया है, फिर भी संसार में 'नन्दी' नाम के कई पदार्थ हैं, प्रस्तुत में कौन-सा 'नन्दी' यथार्थ है, एप्रोप्रिएट है, विवक्षित है अथवा सर्वांगीण आध्यात्मिक विकास का प्रेरक है अथवा हो सकता है ? इसे बताने के लिए अनुयोग पद्धति से नन्दीसूत्र के निक्षेप करके समझाते हैं, जिससे सुगमता से वास्तविक नन्दी का बोध और ग्रहण हो सके। विश्व में समस्त व्यवहार तथा विचारों का आदान-प्रदान भाषा के माध्यम से होता है। भाषा शब्दों से बनती है। एक ही शब्द प्रयोजनवश अथवा प्रसंगवश अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है। जैनदर्शन में किसी भी वस्तु के वस्तुतत्त्व को शब्दों में रखने-प्रस्तुत करने या विभिन्न अर्थों में विश्लेषण करने की कम से कम चार शैलियाँ अनुयोगद्वारसूत्र, तत्त्वार्थसूत्र आदि में बताई गई हैं, उन्हें ही निक्षेप कहते हैं। प्रत्येक शब्द के कम से कम चार अर्थों के रूप में विश्लेषण करने से भले ही शब्दकोष में उसका एक ही अर्थ हो, वह शब्द चार अर्थ का द्योतक हो सकता है और श्रोता या पाठक उनमें से अपने विवक्षित अर्थ को पकड़ सकता है। वे चार प्रकार के निक्षेप ये हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। ___ 'नन्दी' शब्द के भी नामादि निक्षेपों के आधार पर चार निक्षेप इस प्रकार होते हैं-नामनन्दी, स्थापनानन्दी, द्रव्यनन्दी और भावनन्दी। किसी जीव या अजीव का नाम नन्दी रखना नामनन्दी है। जैसे-नन्दिघोष, नन्दिफल, नन्दिषेण, नन्दिवृक्ष, नन्दिग्राम, नन्दिकुमार आदि। तात्पर्य यह है, लोक-व्यवहार में पहचान के लिए किसी जीव या अजीव का नाम नन्दी रख दिया जाता है, उसे उसी नाम से पुकारा या कहा जाता है, भले ही उसमें नाम के अनुरूप गुण हो या न हो अथवा नाम के अनुरूप उस वस्तु में अर्थ-क्रिया हो या न हो। स्थापनानन्दी उसे कहते हैं--किसी कागज या काष्ठ आदि पर 'नन्दी' शब्द लिखना अथवा 'नन्दी' का कोई प्रतीक बनाकर रखना। द्रव्यनन्दी उसे कहते हैंनन्दीसूत्र का जिसे ज्ञान तो है, परन्तु उसमें उपयोग नहीं है। भानशून्यउपयोगरहित नन्दीसूत्र की तोतारटन्त जानकारी को द्रव्यनन्दी कहा जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002996
Book TitleMulsutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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